मुस्लिम शासन में हिंदी फारसी के साथ-साथ चलती रही पर कंपनी सरकार ने एक ओर फारसी पर हाथ साफ किया तो दूसरी ओर हिंदी पर। - चंद्रबली पांडेय।
 

बेईमान (बाल-साहित्य )

Author: अरविन्द

गाँव में एक किसान रहता था जो दूध से दही और मक्खन बनाकर बेचने का काम करता था। 

एक दिन किसान की पत्नी ने मक्खन तैयार करके मक्खन के एक-एक किलो के पेड़े बनाकर किसान को बेचने के लिए दे दिए।   वह उसे बेचने के लिए अपने गाँव से शहर चला गया।  
शहर में किसान ने उस मक्खन को हमेशा की तरह एक दुकानदार को एक-एक किलो के पेड़े  बताकर बेच दिया और दुकानदार से जो पैसे मिले उससे अपने घर के लिए चायपत्ती, चीनी, तेल और साबुन इत्यादि खरीदकर वापस अपने गाँव आ गया।  

अब तो दुकानदार व किसान का अच्छा परिचय हो चला था। इसबार भी किसान ने दुकानदार को एक-एक किलो के मक्खन के पेड़े बेचे इधर, किसान के जाने के बाद दुकानदार मक्खन को रेफ्रिजरेटर में रखने लगा तो उसे खयाल आया कि क्यों ना एक पेड़े का वज़न तोला जाए!  वज़न करने पर पेड़ा केवल  900 ग्राम का निकला।  आश्चर्य और निराशा से उसने सारे पेड़े तोल डाले मगर किसान के लाए हुए सभी पेड़े 900-900 ग्राम के ही निकले।

'धोखेबाज़----बेईमान!"

अगले सप्ताह फिर किसान हमेशा की तरह मक्खन लेकर जैसे ही दुकानदार की दहलीज़ पर चढ़ने लगा तो दुकानदार किसान पर चिल्लाने लगा, "दफ़ा हो जा! किसी बेईमान और धोखेबाज़ से कारोबार करना--- पर मुझसे नही! कपटी कहीं का!"

दुकानदार का गुस्सा रुकने का नाम नहीं ले रहा था, "900 ग्राम के मक्खन को पूरा एक किलो कहकर बेचने वाले शख्स की मैं शक्ल भी देखना पसंद नहीं करता।"

किसान ने बड़ी विनम्रता से दुकानदार की पूरी बात सुनी और फिर कहा,  "मेरे भाई, नाराज़ मत हो।   हम ग़रीब बेशक हों पर बेईमान नहीं!  हमारी माल तोलने के लिए बाट (वज़न) खरीदने की हैसियत नहीं।  आपसे जो एक किलो चीनी लेकर जाता हूँ, उसी को तराज़ू के एक पलड़े में  रखकर दूसरे पलड़े में  उतने ही वज़न का मक्खन तोलकर ले आता हूँ।"

-अरविन्द
 ई -मेल: arvind.gniit.kr@gmail.com

Back

 
Post Comment
 
 
 
 
 

सब्स्क्रिप्शन

इस अंक में

 

इस अंक की समग्र सामग्री पढ़ें

 

 

सम्पर्क करें

आपका नाम
ई-मेल
संदेश