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दूब (काव्य) |
Author: मंजू रानी
तुम ने कभी दूब को मरते देखा है
वह सदा जीवित रहती है।
अन्दर ही अन्दर अपनी जड़े फैलाती रहती है।
अनुकूल वातावरण में सब को पीछे छोड़
सारी धरा पर छा जाती है।
अपनी मिट्टी को अच्छे से जकड़े रहती है
इसलिए
हर मौसम सह जाती है।
सूखने के बाद भी
हरियाली
धरा पर फैला देती है।
ये दूब ही है
जो हर तूफान सह जाती है।
किसी भी रंग को हावी नहीं
होने देती है
इसलिए धरा को विपदाओं से
बचाती रहती है।
पर इंसा इस वहम में जीता है
कि उसने उसे कूचल दिया है
पर वह सदा जीवित रहती है
पर वह सदा जीवित रहती है।
- मंजू रानी
ई-मेल: manjurani2803@gmail.com