जब से हमने अपनी भाषा का समादर करना छोड़ा तभी से हमारा अपमान और अवनति होने लगी। - (राजा) राधिकारमण प्रसाद सिंह।
विदा होता है वह (काव्य)  Click to print this content  
Author:विदा होता है वह | कविता

मेरी हथेली पर छोड़ कर
अपने गर्म होंठों के अहसास
मेरे साथ खुद को भी बहलाता है
तब विदा होता है वह
मैं अन्यमनस्क सी
देखती हूँ अपनी हथेली
वक्त के रुकने की दुआ करती सी
वक्त और तेज़ी से भागने लगता है
और फिर
धीरे से मेरा हाथ मेरी गोद में रखकर,
हौले से पीठ थपथपाता है
फिर विदा होता है वह।

बढ़ता, गहराता, इठलाता, खूबसूरत प्रेम
जो मेरे बदन से लिपटी
रेशमी साड़ी सा ‘मुलायम,
घर में बिछे क़ालीन सा शालीन,
भारी-भरकम वेलवेट के गद्दों सा गुदगुदा एहसास
और
मेरी हथेली पर नमी
ये सब बिखरा कर जाता है
जब विदा होता है वह।

इमली के पेड़ पर उड़ती चिड़िया,
आवारा ख्वाब बुनती दो जोड़ी आँखें
मूक गीत गुनगुनाता है
यूं विदा होता है वह
कहीं नहीं जा पाता
पर विदा होता है वह।

-सुनीता शानू, भारत 

 

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