रंग-बिरंगे पंख तुम्हारे, सबके मन को भाते हैं। कलियाँ देख तुम्हें खुश होतीं फूल देख मुसकाते हैं।। रंग-बिरंगे पंख तुम्हारे, सबका मन ललचाते हैं। तितली रानी, तितली रानी, यह कह सभी बुलाते हैं।। पास नहीं क्यों आती तितली, दूर-दूर क्यों रहती हो? फूल-फूल के कानों में जा धीरे-से क्या कहती हो? सुंदर-सुंदर प्यारी तितली, आँखों को तुम भाती हो। इतनी बात बता दो हमको हाथ नहीं क्यों आती हो? इस डाली से उस डाली पर उड़-उड़कर क्यों जाती हो? फूल-फूल का रस लेती हो, हमसे क्यों शरमाती हो?
- नर्मदाप्रसाद खरे
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