भारत-दर्शन::इंटरनेट पर विश्व की सबसे पहली ऑनलाइन हिंदी साहित्यिक पत्रिका
नवल हर्षमय नवल वर्ष यह,कल की चिन्ता भूलो क्षण भर;लाला के रँग की हाला भरप्याला मदिर धरो अधरों पर!फेन-वलय मृदु बाँह पुलकमयस्वप्न पाश सी रहे कंठ में,निष्ठुर गगन हमें जितने क्षणप्रेयसि, जीवित धरे दया कर!
- सुमित्रानंदन पंत
amp-form
इस अंक की समग्र सामग्री पढ़ें