एक गिलहरी एक पेड़ पर बना रही है अपना घर, देख-भाल कर उसने पाया खाली है उसका कोटर ।
कभी इधर से, कभी उधर से कुदक-फुदक घर-घर जाती, चिथड़ा-गुदड़ा, सुतली, तागा ले जाती जो कुछ पाती ।
ले जाती वह मुँह में दाबे कोटर में रख-रख आती, देख बड़ा सामान इकट्ठा किलक-किलककर वह गाती ।
चिथड़े-गुदडे़, सुतली, धागे --- सब को अन्दर फैलाकर, काट कुतरकर एक बराबर एक बनायेगी बिस्तर ।
फिर जब उसके बच्चे होंगे उस पर उन्हें सुलायेगी , और उन्हीं के साथ लेटकर लोरी उन्हें सुनायेगी
-हरिवंशराय बच्चन
[नीली चिड़िया - बच्चन रचनावली से]
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