सब पर अपना रोब जमाते नन्हे-मुन्ने चिन्टू जी ! भैया से अब्बा कहते हैं दीदी से करते हैं कुट्टी, पापा से कहते हैं - मेला दिखलाओ जी, कल है छुट्टी । कैसे-कैसे दांव चलाते नन्हे-मुन्ने चिन्टू जी ! हलुआ-पूरी जी भर खाते या फिर बरफी पिस्ते वाली, रसगुल्ले जब आते घर में आ जाती चेहरे पर लाली । धमा-चौकड़ी खूब मचाते नन्हे-मुन्ने चिन्टू जी ! हरदम बजती पीं-पीं सीटी. सारे दिन ही हल्ला-गुल्ला, कोई रोके तो कहते हैं क्या मैं बैठा रहूँ निठल्ला ! बिना बात की बात बनाते नन्हे-मुन्ने चिन्टू जी !
- डा. प्रकाश मनु
[साभार - श्रेष्ठ बालगीत, गीतांजलि प्रकाशन] |