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देखो देखो तितली आई, सबके दिल को हरने आई। हरे बैंगनी पर है इसके, मन को नहीं लुभाते किसके॥ इस डाली से उस डाली पर, फूल सूँघती फुदक फुदक कर। बाग़ बगीचों में यह रहती, सब बच्चों के मन को हरती ॥
-दयाशंकर शर्मा [बालसखा, फरवरी 1934]
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