[अमरीका के एक रेड इंडियन की कहानी] अमरीका के जंगल में एक साल का एक कुत्ता अपनी माँ के पास बैठा था। उन दोनों के बाल काफी पडे थे। इससे दूर से देखने वाले उन्हें भेड़िया समझ लेते थे। थोड़ी ही देर में कुत्ते ने आदमियों की आवाज सुनी और वह भोंकना ही चाहता था कि इतने में उसकी बूढी माँ की गरदन में एक तीर लगा और वह वहीं जमीन पर गिर गई। कुत्ते को यह बात बहुत बुरी लगी और वह तीर चलाने वाले लोगों की और भूँ-भूँ करता हुआ झपटा। रेड इडियन की टोली में से एक आदमी उस पर भी तीर चलाना चाहता था, कि इतने में एक रेड इंडियन लड़का आगे बढा और बोला, 'तुम्हें इस छोटे से कुत्ते पर तीर चलाते हुए शर्म नहीं आती। रहने दो, मैं इसे पालूँगा।‘ ऐमा कहकर रेड इंडियन लड़का आगे बढ़ा और उमने उस कुत्ते को पकड़ लिया। कुत्ता उस उसे काटना चाहता था परतु लड़के ने इस होशियारी से उसका गला पकड़ रखा था कि वह लड़के को को काट नहीं सका।
वह लडका रेड इंडियनों के एक सरदार का बेटा था। उसने इस कुत्ते को पालना शुरू कर दिया। कुछ ही दिनों में कुत्ता भी इसस लडके से प्रेम करने लगा। एक दिन लड़के उस कुत्ते का घपथपाते हुए कहा, "तुम एक बहादुर कुत्ता हो। तुम्हारी बहादुरी हम सब लोग जंगल में देख चुके हैं। तुम जबरदस्त लड़ाकू हो। तुम्हारी बहादुरी की वजह से हम लोग अब आज से तुम्हे 'बहादुर' कहेंगे।" कुत्ता उस लड़के की बात सुनता गया। उसकी समझ में एक भी बात नहीं आई लेकिन प्रेम दिखलाने के लिए वह पूँछ हिलाता रहा।
रेड इडियन लडका और उसके साथी उस कुत्ते को ‘बहादुर' कहकर पुकारने लगे। धीरे-धीरे कुत्ता भी समझ गया कि उसका नाम 'बहादुर' रखा गया है। रेड इडियन लड़का जब उसे 'बहादुर' कह कर दूर मे पुकारता तो वह कुत्ता बेतहाशा दौड़कर उसके पास जाता और उसके इर्द-गिर्द कूदने लगता। वह लड़का रोजाना मछली और मांस के टुकड़े उसे खाने को देता। जहाँ कहीं वह लडका जाता, बहादुर कुत्ता उसके साथ जहर जाता।
एक दिन दोपहर को रेड इडियन लड़का धनुष-बाग लेकर उसी जंगल की ओर गया जहाँ उसे बहादुर कुत्ता मिला था। उसके साथ बहादुर कुत्ता भी था। अपने लड़कपन के जंगल को देखकर बहादुर खूब खुश हुआ। वह इधर-उधर उछलने कूदने लगा। थोड़ी ही देर में वह उस जगह भी पहुँचा जहाँ यह अपनी माँ के साथ रहा करता था और जहाँ उसकी माँ को तीर चलानेवाले रेड इंडियनों ने मार डाला था। वह बड़ी देर तक वहाँ उस पेड़ के नीचे खड़ा रहा जिसके नीचे वह बचपन में अपनी माँ का दूध पीता और उसके बदन पर लोटता था। रेड इंडियन लड़का यह समझता था कि बहादुर कुत्ता उसके पीछे आ रहा है। इसी से वह बहुत दूर चला गया।
थोड़ी ही देर मे बहादुर के कानो में यह आवाज पडी, "बहादुर! बहादुर!! दौड़ो, बचाओ। तुम कहाँ हो ? बहादुर, दौडो।"
बहादुर अपने मालिक की आवाज अच्छी तरह पहचानता था। वह तेजी से उसी ओर झपटा जिधर से डरी हुई आवाज आ रही थी। थोड़ी ही देर में वह उस जगह पहुँच गया जहाँ उसका मालिक खड़ा था। उसके पास ही जमीन पर कई मरे हुए भेड़िये पड़े थे जिन्हें उस रेड इंडियन लड़के ने धनुष और बाण की सहायता मे मार डाला था। अब उसके पास एक भी बान नहीं था और सामने की झाड़ी में एक खूंखार भेड़िये की आँखें चमक रही थीं। यह भेड़िया मरे हुए भेड़ियों का सरदार था। बहादुर कुत्ते ने आते ही सभी बात समझ लीं। यह बात भी उसकी समझ में आ गई कि सामने की झड़ियों में भेड़ियों का सरदार बैठा है और वह तुरंत ही उसके मालिक रेड इंडियन पर धावा करनेवाला है। बहादुर झाड़ी में छिपे हुए भेड़िये की ओर झपटा। दोनों में बहुत देर तक लड़ाई होती रही। कभी भेड़िया ऊपर जाता और कभी नीचे । रेड इंडियायन लड़का बार-बार कुत्ते को शाबाशी देता हुआ कहता, "शाबाश, बहादुर।" थोड़ी ही देर में भेड़िया जमीन पर गिर गया और मर गया। रेड इंडियन लड़के ने दौड़कर बहादुर को उठा लिया और उसे थपथपाना शुरू कर दिया। बहादुर का शरीर भी कई जगह कट गया था और वह बड़े ज़ोरों से हाँफ रहा था। लड़का थोड़ी देर तक वहां रुका रहा। बाद में उसने बहादुर का मुँह अपने हाथ में लेकर कहा, "बहादुर, मैंने तुम्हारी जिंदगी बचाई थी। आज तूने मेरी जिंदगी बचा दी। तुम हमारे सब मे बड़े दोस्त हो।" इसके बाद दोनों चल पडे।
-देवदत्त द्विवेदी [बाल सखा, जनवरी 1939]
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