भारत-दर्शन::इंटरनेट पर विश्व की सबसे पहली ऑनलाइन हिंदी साहित्यिक पत्रिका
लम्बे सफर में हम भारतीयों कोकभी पत्थर कभी मिले बबूल
कभी मिट जाती कभी जम जातीइतिहास के दर्पण पर धूल
जिस देश को अपनाया हमनेवह टूट रहा फिर एक बार
चमन यह बिगड़ा इस तरहकाँटे बन रहे सारे फूल
- जोगिन्द्र सिंह कंवल, फीजी
amp-form
इस अंक की समग्र सामग्री पढ़ें