भारतेंदु और द्विवेदी ने हिंदी की जड़ पाताल तक पहुँचा दी है; उसे उखाड़ने का जो दुस्साहस करेगा वह निश्चय ही भूकंपध्वस्त होगा।' - शिवपूजन सहाय।
 

फ़ौसफ़र

 (बाल-साहित्य ) 
 
रचनाकार:

 दिव्या माथुर

बिन्नी बुआ का सही नाम बिनीता है पर सब उन्हें प्यार से बिन्नी कहते हैं। बिन्नी बुआ के पालतु बिल्ले का नाम फ़ौसफ़र है और फ़ौसफ़र के नाम के पीछे भी एक मज़ेदार कहानी है। जब बिन्नी बुआ उसे पहली बार घर में लाईं थीं तो उसके चमकते हुए सफ़ेद और काले कोट को देख कर ईशा ने चहकते हुए कहा था।

'अरे, यह बिल्ला तो मेरे खिलौने लंगूर जैसा चमक रहा है,' ईशा की बात सुन कर बिन्नी बुआ ने फ़ौरन उस बिल्ले का नाम फ़ौसफ़र रख दिया।

'फ़ौसफ़र क्या होता है?' ईशा ने पूछा।

'अंधेरे में चमकने वाले खिलौनों में फ़ौसफ़र नाम की एक सामग्री होती है, जो सूरज या किसी और रौशनी से एनर्जी यानि ऊर्जा लेकर चमकने लगती है,' बिन्नी बुआ ने बताया।

'ओह! अब समझी कि मेरे बहुत से खिलौने क्यों चमकते हैं। तो फिर, बिन्नी बुआ, क्या जुगनू भी इसीलिये चमकते हैं?' ईशा ने पूछा।

'तुमने अच्छा सवाल पूछा, ईशा, ऐसा तब होता है जब दो कैमिकल्स आपस में मिलने पर ऊर्जा पैदा करते हैं। जुगनू में भी ऐसा ही एक कैमिकल होता है जो अँधेरे में चमकता है। याद है जब हम एक्वेरियम गए थे! वहाँ हमने चमकने वाली मछलियां और केकड़े देखे थे, जिनके शरीर से रौशनी निकल रही थी!'

'हाँ, वो मैं कैसे भूल सकती हूँ, बहुत सुंदर लग रहे थे। तब मैं आप से यह पूछना भूल गयी थी, बिन्नी बुआ, कि जुगनू हमेशा टिमटिमाते क्यों रहते हैं? अगर हमेशा चमकते रहते तो मैं इन्हें अपने कमरे में लाइट की जगह इस्तेमाल कर लेती, मम्मी-पापा का बहुत सा खर्चा बच जाता।'

'बिलकुल सही कहा तुमने, ईशा, जिस ज़माने में बिजली नहीं थी, बहुत से लोग ऐसा ही करते थे। छोटे-छोटे छेद वाले बर्तन में वे ढेर सारे जुजुगनुओं को बंद कर देते थे। जुगनुओं के साँस लेने और छोड़ने पर लाइट जलती बुझती है और तुम्हें यह जान कर हैरानी होगी कि टिमटिमाने के ज़रिये जुगनू आपस में बातें भी करते हैं। कैमिस्ट्री की क्लास में तुम्हें इस बारे में और भी ज़्यादा जानकारी मिलेगी।'

'जब मैं बड़ी क्लास में आ जाऊंगी न, बिन्नी बुआ, तो मैं कैमिस्ट्री ज़रूर पढूंगी।'

'तुम्हारे लिए यह विषय बहुत मनोरंजक होगा, ईशा, यदि तुम कैमिस्ट्री यानि कि रसायन-शास्र के बारे में जान लोगी तो तुम्हें बहुत सी बातें समझ आ जाएँगी जैसे चाँद की मिट्टी कैसी है, पृथ्वी और पेड़-पौधों का ज्ञान, ओज़ोन कैसे बनता है, दवाइयां कैसे काम करती हैं, वगैरह वगैरह।'

'बिन्नी बुआ, मैं जल्दी से बड़ी हो जाऊं तो कितना अच्छा हो? अभी तो सब मुझ से यही कहते रहते हैं, अभी तुम छोटी हो, जब बड़ी हो जाओगी तो जान जाओगी।'

'ईशा, धीरे-धीरे रे मना, धीरे सब कुछ होय, माली सींचे सौ घड़ा, ॠतु आए फल होय,' दादी ने समझाया।

'दादी, मुझे पता था आप यही कहेंगी। मुझे कबीर जी का यह दोहा रट चुका है।' अपना हाथ माथे पर रखते हुए ईशा ने दोहा ज्यों का त्यों दोहरा दिया। सबने तालियाँ बजा कर ईशा की तारीफ़ की। ईशा की छोटी बहन मीशा, जो ईशा से तीन साल छोटी है, को कुछ भी समझ नहीं आया था पर सबकी नकल करते हुए वह भी तालियाँ बजा रही थी।

-दिव्या माथुर, ब्रिटेन

[ 'बिन्नी बुआ का बिल्ला' उपन्यास से एक अंश]

Back
 
Post Comment
 
Type a word in English and press SPACE to transliterate.
Press CTRL+G to switch between English and the Hindi language.
 

सब्स्क्रिप्शन

इस अंक में

 

इस अंक की समग्र सामग्री पढ़ें

 

 

सम्पर्क करें

आपका नाम
ई-मेल
संदेश