कोई कौम अपनी जबान के बगैर अच्छी तालीम नहीं हासिल कर सकती। - सैयद अमीर अली 'मीर'।
 

गीत

गीतों में प्राय: श्रृंगार-रस, वीर-रस व करुण-रस की प्रधानता देखने को मिलती है। इन्हीं रसों को आधारमूल रखते हुए अधिकतर गीतों ने अपनी भाव-भूमि का चयन किया है। गीत अभिव्यक्ति के लिए विशेष मायने रखते हैं जिसे समझने के लिए स्वर्गीय पं नरेन्द्र शर्मा के शब्द उचित होंगे, "गद्य जब असमर्थ हो जाता है तो कविता जन्म लेती है। कविता जब असमर्थ हो जाती है तो गीत जन्म लेता है।" आइए, विभिन्न रसों में पिरोए हुए गीतों का मिलके आनंद लें।

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कुछ कर न सका  - हरिवंश राय बच्चन | Harivansh Rai Bachchan

मैं जीवन में कुछ कर न सका 
जग में अंधियारा छाया था, 
मैं ज्वाला ले कर आया था, 
मैंने जलकर दी आयु बिता, पर जगती का तम हर न सका । 
मैं जीवन में कुछ कर न सका ! 

 
जब सुनोगे गीत मेरे... - आनन्द विश्वास (Anand Vishvas)

दर्द की उपमा बना मैं जा रहा हूँ,
पीर की प्रतिमा बना मैं जा रहा हूँ।
दर्द दर-दर का पिये मैं, कब तलक घुलता रहूँ।
अग्नि अंतस् में छुपाये, कब तलक जलता रहूँ।
वेदना का नीर पीकर, अश्रु आँखों से बहा।
हिम-शिखर की रीति-सा मैं, कब तलक गलता रहूँ।
तुम समझते पल रहा हूँ, मैं मगर,
दर्द का पलना बना मैं जा रहा हूँ।

 
ओ देस से आने वाले - अख़्तर शीरानी

ओ देस से आने वाले बता
किस हाल में है याराने-वतन? 
क्‍या अब भी वहाँ के बाग़ों में मस्‍ताना हवायें आती हैं?
क्‍या अब भी वहाँ के परबत पर घनघोर घटायें छाती हैं?
क्‍या अब भी वहाँ की बरखायें वैसे ही दिलों को भाती हैं?
ओ देस से आने वाले बता!

 
हिन्दी गीत  - डॉ माणिक मृगेश 

हिन्दी भाषा देशज भाषा, 
निज भाषा अपनाएँ।
खुद ऊँचा उठें, राष्ट्र को भी--  
ऊँचा ले जाएँ॥ 

 
पगले दर्पण देख  - नसीर परवाज़

कितना धुंधला कितना उजला तेरा जीवन देख 
पगले दर्पण देख 

 

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