कोई कौम अपनी जबान के बगैर अच्छी तालीम नहीं हासिल कर सकती। - सैयद अमीर अली 'मीर'।
 

बाल-साहित्य

बाल साहित्य के अन्तर्गत वह शिक्षाप्रद साहित्य आता है जिसका लेखन बच्चों के मानसिक स्तर को ध्यान में रखकर किया गया हो। बाल साहित्य में रोचक शिक्षाप्रद बाल-कहानियाँ, बाल गीत व कविताएँ प्रमुख हैं। हिन्दी साहित्य में बाल साहित्य की परम्परा बहुत समृद्ध है। पंचतंत्र की कथाएँ बाल साहित्य का एक महत्वपूर्ण स्रोत हैं। हिंदी बाल-साहित्य लेखन की परंपरा अत्यंत प्राचीन है। पंचतंत्र, हितोपदेश, अमर-कथाएँ व अकबर बीरबल के क़िस्से बच्चों के साहित्य में सम्मिलित हैं। पंचतंत्र की कहानियों में पशु-पक्षियों को माध्यम बनाकर बच्चों को बड़ी शिक्षाप्रद प्रेरणा दी गई है। बाल साहित्य के अंतर्गत बाल कथाएँ, बाल कहानियां व बाल कविता सम्मिलित की गई हैं।

Article Under This Catagory

कठपुतली - त्रिलोक सिंह ठकुरेला

ठुमक-ठुमक नाचे कठपुतली 
सबके मन को मोहे।
रंग बिरंगे सुन्दर कपड़े 
उसके तन पर सोहे॥

 
डर भी पर लगता तो है न - दिविक रमेश

चटख मसाले और अचार
कितना मुझको इनसे प्यार!
नहीं कराओ  इनकी   याद
देखो  देखो  टपकी  लार।

 
खुरपी - भारत-दर्शन संकलन

शेखचिल्ली की माँ एक दिन किसी शादी में जाने के लिए घर से बाहर जाने लगी। उन्होंने जाने से पहले अपने बेटे को आवाज देते हुए कहा, “बेटा शेख तुम जंगल जाकर घास ले आना। फिर पड़ोसी को घास देकर पैसे ले लेना। तुम यहां ये काम करो और मैं शादी में जाकर तुम्हारे लिए मिठाइयां लेकर आऊंगी।” शेख चिल्ली ने खुशी-खुशी माँ की बात मान ली।

 
ईश्वर का न्याय - भारत-दर्शन संकलन | Collections


 
करना हो सो कीजिए - गिजुभाई बधेका

एक कौआ था। वह रोज नदी-किनारे जाता और बगुले के साथ बैठता। धीरे-धीरे दोनों में दोस्ती हो गई। बगुला मछलियां पकड़ता और कौए को खिलाया करता। बगुला नये-नये ढंग से रोज़ नई-नई मछलियां पकड़ता रहता, कौए को हर दिन नया-नया भोजन मिलने लगा।

 
उल्लुओं की बस्ती में - पंडित विष्णु शर्मा

एक वृक्ष पर एक उल्लू रहता था। उल्लू को दिन में दिखाई नहीं पड़ता, इसीलिए इसको दिवांध भी कहते हैं। उल्लू दिन-भर अपने घोंसले में छिपा रहता था। जब रात होती थी, तो शिकार के लिए बाहर निकलता था।

 
प्यारे बादल - त्रिलोक सिंह ठकुरेला

देखो, माँ! नभ में आ पहुँचे, 
ये घनघोर सुघड़ बादल। 
इन्हें देखकर इतराई, झूमी, 
हवा हुई कितनी चंचल॥ 

 
सच बोलनेवाला चोर  - तुलसी देवी दीक्षित

एक पंडित के जब कोई लड़का होता, तो वे पहले ही से उसका भविष्य बतला देते थे। एक लड़के के संबंध में उन्होंने अपनी श्री से बतलाया कि वह चोर होगा। लड़का पढ़ने में बड़ा होशियार था। इससे लोग उसे शास्त्रीभी कहते थे । जब वह बड़ा हुआ, तो उसका विवाह करके, उसके माता-पिता तीर्थ-यात्रा करने चले गए।

 

सब्स्क्रिप्शन

इस अंक में

 

इस अंक की समग्र सामग्री पढ़ें

 

 

सम्पर्क करें

आपका नाम
ई-मेल
संदेश