हमारी हिंदी भाषा का साहित्य किसी भी दूसरी भारतीय भाषा से किसी अंश से कम नहीं है। - (रायबहादुर) रामरणविजय सिंह।
साक्षात्कार  
साक्षात्कार के अंतर्गत हम विभिन्न लोगों से बातचीत करेंगे और उन्हें आप तक पहुँचाएंगे।
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साक्षात्कार | इनसे मिलिए  - रोहित कुमार 'हैप्पी' | न्यूज़ीलैंड

रोहित कुमार हैप्पी द्वारा विभिन्न व्यक्तित्वों से साक्षात्कारों का संकलन।

 
गाँधीवाद तो अमर है - डा अरूण गाँधी  - रोहित कुमार 'हैप्पी' | न्यूज़ीलैंड

Rohit Kumar with Dr Arun Gandhi

 
स्वामी रामदेव  - रोहित कुमार 'हैप्पी' | न्यूज़ीलैंड

स्वामी रामदेव से भारत-दर्शन के संपादक रोहित कुमार 'हैप्पी' से हुई बातचीत के मुख्य अंशः

 
हिंदी ने मुझे बहुत कुछ दिया : डॉ॰ विवेकानंद शर्मा  - रोहित कुमार 'हैप्पी' | न्यूज़ीलैंड

नांदी के पास के एक गाँव में पैदा हुए डॉ॰ विवेकानंद शर्मा [1939 - 9 सितंबर 2006] फीज़ी में हिंदी के एक प्रतिष्ठित लेखक रहे हैं। फीजी के पूर्व युवा तथा क्रीडा मंत्री, सांसद डॉ॰ विवेकानंद शर्मा का हिंदी के प्रति गहरा लगाव रहा है। फीजी में हिंदी के विकास के लिए वह निरंतर प्रयत्नशील रहे। बचपन से ही वे हिंदी सीखना चाहते थे और भारत जाना चाहते थे। फीजी के पूर्व प्रधानमंत्री महेन्द्र चौधरी डॉ॰ विवेकानंद शर्मा के हाई स्कूल के सहपाठी रहे हैं। आपने फीज़ी में टीचर ट्रेनिंग की फिर अध्यापक हो गए और बाद में भारत चले गए और गोरखपुर महाविद्यालय में दाखिला ले लिया। उसके बाद देहली महाविद्यालय से बी॰ए॰ की। इसी दौरान भारत में कई लेखकों व कवियों के सर्पक में आए। फिर फीज़ी के भूतपूर्व राष्ट्रपति रातू मारा ने इन्हें प्रेरित किया कि फीजी लौटकर फीजी की सेवा करे। लगभग दो साल फीजी रहने के पश्चात पुनः भारत जाकर आपने पीएचडी की। वे कहते थे, 'हिंदी ने मुझे बहुत कुछ दिया। फीजी में जो स्थान हिंदी को दिया गया, वो स्थान तो हिंदी को भारत में भी नहीं मिला।'

फीज़ी की वर्तमान दशा के बारे में आप क्या कहेंगे? 
भारत से हमारी अपेक्षाएं थी, हम सोचते थे कि भारत हमारे बारे में अन्तरराष्ट्रीय मंच पर आवाज उठाएगा। शायद भारत अपनी समस्याओं से जूझ रहा है। फिर वैसे भी हम भारत से इतने दूर हैं, इस स्थिति में शायद भारत बहुत कुछ नहीं कर सकता था। हम चाहते थे कि हमें ऐसा लगे कि भारत हमारे पीछे है पर ऐसा लगता नहीं है। हमारा यहाँ कौन संरक्षक है? पड़ोसी देशों के तो उच्चायुक्त ही वापिस बुला लिए गए हैं। भारत के उच्चायुक्त का यहाँ होना तो हमारे लिए फक्र की बात है लेकिन वे अकेले क्या कर पाएंगे। वो तो बेचारे खुद ऐसे संकट के समय हमारे साथ संकट झेल रहे हैं। आज जो ये मांग उठाई जा रही है कि फीजी फीजियन के लिए है, वो तो किसी हद तक ठीक है किन्तु भारतीयों के योगदान को तो पूरी तरह नजरअंदाज कर दिया गया है । हमने खून-पसीना एक करके इस देश को आबाद किया है जब भारत, ऑस्ट्रेलिया और इंग्लैंड हमारे पूर्वजों को यहाँ लाए थे, तो उन्हें बहकाकर झूठे सपने दिखाकर यहाँ लाया गया था। फिर आज ये तीनों जिम्मेवार देश क्यों मुँह छुपाए घूम रहे हैं। क्यों नहीं भारत खुलकर सामने आता? क्या भारत आज शक्तिहीन हो गया? क्यों नहीं भारत कुछ कह और कर सकता? भारत कुछ कह या कर रहा है, हमें तो ऐसा कुछ फीज़ी में सुनने को नहीं मिल रहा है। 

हमारे दिल में भारत के लिए बहुत प्यार, बहुत श्रद्धा है। भारत का भी ये धर्म है, कर्तव्य है कि वो अपने बच्चों के लिए कुछ करे। 

विश्व समुदाय के बारे में आप क्या कहना चाहेंगे? 
ऑस्ट्रेलिया और इंग्लैंड हमारे पूर्वजों को यहाँ लाने के जिम्मेदार हैं। ...और फीज़ी के भारतीयों की संख्या है ही कितनी? केवल तीन लाख । हमें ऑस्ट्रेलिया के किसी भी कोने में डाल दे - हम खा लेंगे, पी लेंगे, आराम से जी लेंगे और ऑस्ट्रेलिया की उन्नति करेंगे। 

...लेकिन फिर आप ऑस्ट्रेलिया के प्रधानमंत्री भी तो बनना चाहेंगे? 
ये बहुत अच्छा प्रश्न किया है आपने।  …लेकिन जब भारतीयों को यहाँ लाया गया तो हमें पूर्ण नागरिक अधिकार दिये गये थे। हमने फीजी की उन्नति में पूरा योगदान दिया। उसके बाद हमने इसी देश को अपना समझ लिया और भारत की ओर मुड़ कर भी नहीं देखा। भारत तो हमारे लिए ननिहाल है। 

जिस ननिहाल को आपने कभी पीछे मुड़कर ही नहीं देखा वो अब आपके लिए क्या करे? आप क्यों भारत से अपेक्षाएं रखते हैं? 
कुछ क्षण सोचकर वे मुसकरा पड़ते हैं। फिर कहते हैं, 'ये भी बहुत अच्छा प्रश्न है आपका?' 'ननिहाल के प्रति मोह तो हर नाति के मन में होता है और मुसीबत पड़ने पर वो ननिहाल की ओर ही दौड़ता है, देखता है। भगवान कृष्ण आदि सब इसके साक्षी है। हम भारतीयों को हजारों मील दूर दुनिया के एक दूसरे कोने पर लाकर डाल दिया गया, उसके बाद नानी ने कितनी अपने नातियों का ख्याल रखा है। 

लेखक होने के नाते आपने क्या किया? क्या आपने नई पीढ़ी में स्वाभिमान जागृति करने के लिए कुछ किया? 
आपने तो मेरी दुखती रग पर हाथ रख दिया है। मेरा ये मानना है कि यदि हिंदी भाषा में हमारी पूरी आस्था नहीं होगी तब संस्कृति कहाँ रहेगी! ...और हम उसी के प्रचार में लगे हुए हैं।

-रोहित कुमार हैप्पी

[डॉ॰ विवेकानंद शर्मा का यह साक्षात्कार सन् 2000 में फीजी के तख्तापलट के दौरान लिया गया था]

 
डा अरून गाँधी से बातचीत  - रोहित कुमार 'हैप्पी' | न्यूज़ीलैंड

महात्मा गांधी के पौत्र डा अरून गाँधी से बातचीत

 
फिजी के प्रधानमंत्री से बातचीत  - रोहित कुमार 'हैप्पी' | न्यूज़ीलैंड

अन्याय के सामने न झुका हूं, न झुकूंगा - महेन्द्र चौधरी

 
रूस के प्रो. लुदमिला खोखलोवा से बातचीत  - डॉ संध्या सिंह | सिंगापुर

 “हिंदी दोस्ती की भाषा है, इससे अलग किस्म के सपने पूरे होते हैं।”

 
जयप्रकाश मानस से बातचीत  - रोहित कुमार 'हैप्पी' | न्यूज़ीलैंड

स्वंयसेवी आधार पर हिंदी-संस्कृति का प्रचार-प्रसार - जयप्रकाश मानस
[2012]

 
श्रीमती सुक्लेश बली से डॉ. सुभाषिनी कुमार की बातचीत  - सुभाषिनी लता कुमार | फीजी

फीजी में हिंदी शिक्षण का अलख जगाती हिंदी सेवी श्रीमती सुकलेश बली से साक्षात्कार

Mrs Suklesh Bali

 
प्रीता व्यास से बातचीत  - रोहित कुमार 'हैप्पी' | न्यूज़ीलैंड

प्रीता व्यास का जन्म भारत में हुआ लेकिन कई दशकों से वे न्यूजीलैंड निवासी हैं। आपने 175 पुस्तकें लिखी है जिनमें अधिकतर अँग्रेज़ी बाल साहित्य है। अँग्रेज़ी बाल साहित्य के अतिरिक्त आपने हिंदी में भी 'पत्रकारिता परीक्षा विश्लेषण', 'इंडोनेशिया की लोक कथाएं', 'दादी कहो कहानी', 'बालसागर क्या बनेगा', 'जंगल टाइम्स', 'कौन चलेगा चांद पर रहने', 'लफ्फाजी नहीं होती है कविता' इत्यादि हिंदी पुस्तकें लिखी है। आपकी नई पुस्तक 'पहाड़ों का झगड़ा' माओरी लोक-कथा संकलन है। 

 
मदारीपुर जंक्शन के उपन्यासकार बालेंदु द्विवेदी से बातचीत  - रोहित कुमार 'हैप्पी' | न्यूज़ीलैंड

बालेंदु द्विवेदी को उनके पहले उपन्यास ‘मदारीपुर जंक्शन' ने हिंदी उपन्यासकारों की श्रेणी में स्थापित कर दिया है। बालेन्दु द्विवेदी का जन्म उत्तर प्रदेश के गोरखपुर जनपद के ब्रह्मपुर गाँव में हुआ। प्रारंभिक शिक्षा-दीक्षा पैतृक गाँव के मारुति नंदन प्राथमिक विद्यालय तथा लल्लन द्विवेदी इंटर कालेज में हुई। आपने इंटरमीडिएट की पढ़ाई (1989-1991) चौरी चौरा के ऐतिहासिक स्थल स्थित 'गंगा प्रसाद स्मारक इंटर कालेज' से की और आगे की पढ़ाई इलाहाबाद विश्वविद्यालय से स्नातक (1991-1994) और परास्नातक (1994-1996) की।

 
सर एडमंड हिलेरी से बातचीत  - रोहित कुमार 'हैप्पी' | न्यूज़ीलैंड

यह साक्षात्कार आउटलुक साप्ताहिक के लिए 2007 में लिया गया था।  

 
पूर्णिमा वर्मन से बातचीत  - रोहित कुमार 'हैप्पी' | न्यूज़ीलैंड

इन्टरनेट पर हिंदी की वैब दुनिया की बात करें तो पूर्णिमा वर्मन एक सुपरिचित नाम  हैं और सर्वाधिक लोकप्रिय व्यक्तियों में से एक हैं। वैब के आरंभिक दौर में हिंदी को प्रचारित-प्रसारित करने में आपकी अहम् भूमिका रही है। आप दशकों तक शारजहा में रही हैं और वहीं आपने अपनी वैब यात्रा आरम्भ की थी।  वर्तमान में आप लखनऊ (भारत) में हैं।  

 
उच्चायुक्त मुक्तेश परदेशी से साक्षात्कार  - रोहित कुमार 'हैप्पी' | न्यूज़ीलैंड

उच्चायुक्त मुक्तेश परदेशी

 
इटली के हिन्‍दी भाषाविद् मार्को जोल्ली से बातचीत  - रोहित कुमार 'हैप्पी' | न्यूज़ीलैंड

इटली के हिन्‍दी भाषाविद् मार्को जोल्ली हिन्‍दी साहित्य में पीएचडी हैं। आपने भीष्म साहनी पर थीसिस लिखा है। भीष्म साहनी के उपन्यास का इटालियन में अनुवाद किया है। वे लगभग दस वर्षों से हिन्‍दी पढ़ा रहे हैं। उनको इस बार विश्व हिन्‍दी सम्मेलन का भाषा पर केन्द्रित होना अच्छा लगा।

आपने हिन्‍दी कहाँ सीखी?
"मैंने अपनी पढ़ाई इटली से की है लेकिन अभ्यास भारत में ही किया है।"

क्या आप भारत आते-जाते रहते हैं?
"हाँ, मैं भारत आता जाता रहता हूँ। मैं पिछले बीस सालों से यहाँ आता हूँ। सात साल पहले मैं देहली यूनिवर्सिटी में इटालियन पढ़ाता था हिन्‍दी माध्यम से।" कुछ क्षण रुक कर मार्को मुस्कराते हुए कहते हैं, "मज़े की बात यह है कि पूरे विभाग में मैं ही अकेला था जो हिन्‍दी माध्यम से पढ़ाता था। बाकी लोग अंग्रेज़ी माध्यम से पढ़ाते थे।"

इटली में हिन्‍दी किस स्तर पर पढ़ाई जाती है?
"वहाँ विश्वविद्यालय स्तर पर हिन्‍दी पढ़ाई जाती है। देखिए, इंडिया के साथ दिक्कत ये है कि लोग ये सोचते हैं कि इंडिया में अंग्रेज़ी चलती है और यह सोचते हैं हिंदुस्तानियों की वजह से। हिंदुस्तानी यही बोलते हैं कि यहाँ आने के लिए हिन्‍दी सीखने की जरूरत नहीं है, यहाँ पर अँग्रेज़ी चलती है। जबकि यह सच नहीं!"

फिर अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए कहते हैं, "मेरे ख्याल से अँग्रेज़ी बोलने वालों की संख्या होगा 10 प्रतिशत जो अच्छी अँग्रेज़ी बोलते हैं। अब इस अँग्रेज़ी के चक्कर में हमारे वहाँ के लोगों को लगता है कि हम क्यों हिन्‍दी सीखें जबकि कोई ज़रूरत है नहीं! मैं पिछले दस सालों से अपने वहाँ लोगों को यह समझाने की कोशिश कर रहा हूँ कि भारत जाने के लिए कम से कम वहाँ की एक भाषा सीखनी जरूरी है। सबसे अधिक बोली जाने वाली भाषा तो हिन्‍दी ही है तो हम बोलते हैं कि हिन्‍दी ही सीखो।"

भाषा को लेकर आपके और किस प्रकार के अनुभव हैं?
"आप शुद्ध हिन्‍दी पढ़ाकर भी हिन्‍दी का विकास नहीं कर सकते। शुद्ध हिन्‍दी पढ़कर यदि बच्चे सब्जी वाले के पास जाते हैं तो वे उनकी बात नहीं समझ सकते और उन्हें ऐसे देखेंगे कि ये कहाँ से आए हैं। क्या बात कर रहे हैं? एक मध्यम रास्ता निकाला जाना चाहिए। भाषा लोगों से सम्पर्क करने का एक तरीका होता है।

व्याकरण वगैरह बहुत ज़रूरी होता है पर उससे भी अधिक ज़रूरी होता है भाषा को बोलना। हम हिन्‍दी पढ़ाते हुए इस बात का ध्यान रखते हैं कि लोगों को भारत की संस्कृति के बारे में भी जानकारी दें। हम यह भी समझाते हैं कि हिंदोस्तानियों से मिलने के लिए व भारत की संस्कृति को समझने के लिए भाषा सीखना बहुत ज़रूरी है।"

 
भारतीय उच्चायोग का मतलब सेवा है : उच्चायुक्त परदेशी  - रोहित कुमार 'हैप्पी' | न्यूज़ीलैंड

HC Sh Pardeshi

 
विश्वरंग के निदेशक संतोष चौबे से बातचीत  - रोहित कुमार 'हैप्पी' | न्यूज़ीलैंड

विश्वरंग के निदेशक संतोष चौबे से से बातचीत

 
सर एडमंड हिलेरी से साक्षात्कार  - रोहित कुमार 'हैप्पी' | न्यूज़ीलैंड

[सर एडमंड हिलेरी ने 29 मई 1953 को एवरेस्ट विजय की थी। आज वे हमारे बीच नहीं हैं लेकिन 2007 को उनसे हुई बातचीत के अंश आपके लिए यहाँ पुन: प्रकाशित किए जा रहे है]

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