मूर्तिमती जिनकी विभूतियाँ जागरूक हैं त्रिभुवन में; मेरे राम छिपे बैठे हैं मेरे छोटे-से मन में;
धन्य-धन्य हम जिनके कारण लिया आप हरि ने अवतार; किन्तु त्रिवार धन्य वे जिनको दिया एक प्रिय पुत्र उदार;
हुए कुमारी कुन्ती के ज्यों वीर कर्ण दानी मानी; माँ मरियम के ईश हुए त्यों धर्मरूप वर बलिदानी;
अपना ऐसा रक्त मांस सब और गात्र था ईसा का; पर जो अपना परम पिता है पिता मात्र था ईसा का।
मैथिलीशरण गुप्त [विशाल भारत] |