हिंदी के पुराने साहित्य का पुनरुद्धार प्रत्येक साहित्यिक का पुनीत कर्तव्य है। - पीताम्बरदत्त बड़थ्वाल।
बाँध दिए क्यों प्राण  (काव्य)    Print  
Author:सुमित्रानंदन पंत | Sumitranandan Pant
 

सुमित्रानंदन पंत की हस्तलिपि में उनकी कविता, 'बाँध दिए क्यों प्राण'

सुमित्रानंदन पंत की हस्तलिपि में उनकी कविता - बाँध दिए क्यों प्राण

 

#

बाँध दिए क्यों प्राण
प्राणों से!
तुमने चिर अनजान
प्राणों से!

गोपन रह न सकेगी,
अब यह मर्म कथा,
प्राणों की न रुकेगी,
बढ़ती विरह व्यथा,
विवश फूटते गान
प्राणों से!

यह विदेह प्राणों का बंधन,
अंतर्ज्वाला में तपता तन,
मुग्ध हृदय सौन्दर्य ज्योति को,
दग्ध कामना करता अर्पण!
नहीं चाहता जो कुछ भी आदान
प्राणों से!


बाँध दिए क्यों प्राण
प्राणों से!

-सुमित्रानंदन पंत

[आधुनिक कवि, भाग २]

Back
 

सब्स्क्रिप्शन

सर्वेक्षण

भारत-दर्शन का नया रूप-रंग आपको कैसा लगा?

अच्छा लगा
अच्छा नही लगा
पता नहीं
आप किस देश से हैं?

यहाँ क्लिक करके परिणाम देखें

इस अंक में

 

इस अंक की समग्र सामग्री पढ़ें