विकसित करो हमारा अंतर अंतरतर हे !
उज्ज्वल करो, करो निर्मल, कर दो सुन्दर हे ! जाग्रत करो, करो उद्यत, निर्भय कर दो हे ! मंगल करो, करो निरलस, निसंशय कर हे !
विकसित करो हमारा अंतर अंतरतर हे !
युक्त करो हे सबसे मुझको, बाधामुक्त करो, सकल कर्म में सौम्य शांतिमय अपने छंद भरो चरण-कमल में इस चित को दो निस्पंदित कर हे ! नंदित करो, करो प्रभु नंदित, दो नंदित कर हे !
विकसित करो हमारा अंतर अंतरतर हे !
-रवीन्द्रनाथ टैगोर
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साभार - गीतांजलि, भारती भाषा प्रकाशन (1979 संस्करण), दिल्ली
अनुवादक - हंसकुमार तिवारी
Rabindranath Tagore Ki Geetanjli
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