डूब जाता हूँ मैं ज़िंदगी के उन तमाम अनुभावों में जब खोलता हूँ अपने जहन की एल्बम पन्ना दर पन्ना और जब झांकता हूँ उन यादों में
कुछ यादें सकूं देती हैं कुछ यादें परेशान करती हैं कुछ प्रतिशोध की आग में जलाती हैं तो कहीं कुछ हौसला भी पाता हूँ जब झांकता हूँ उन यादों में
कहीं कुछ पाने की ख़ुशी है तो कहीं कुछ खोने का भी है ग़म कहीं भरोसे का मरहम है तो कहीं छले जाने का मातम कहीं दुश्मनों की कतार है तो कहीं कुछ दोस्त भी पाता हूँ जब झांकता हूँ उन यादों मैं
कहीं बचपन की नासमझी है तो कहीं जवानी में समझदार होने का दिखावा कहीं पुरानी परम्पराओं को तोड़ने की जिद है तो कहीं दुनिया से अलग महसूस होने का छलावा कहीं कुछ बदगुमानिया हैं तो कहीं कुछ संस्कार भी पाता हूँ जब झांकता हूँ उन यादों मैं
- अभिषेक गुप्ता
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