इश्क और वो इश्क की जांबाज़ियाँ हुस्न और ये हुस्न की दम साज़ियाँ
वक्ते-आख़्रिर है, तसल्ली हो चुकी आज तो रहने दो हेलाबाज़ियाँ
गैर हालत है तेरे बीमार की अब करेंगी मौत चारासाज़ियाँ
'अश्क' क्या मालूम था, रंग लायेंगी यों तबीयत की तेरी नासाज़ियाँ
-उपेद्रनाथ अश्क
विशेष : अश्क जी किसी ज़माने में उर्दू में ग़ज़ल कहा करते थे लेकिन कॉलेज के दिनों में ही ग़ज़ल छोड़कर कहानी लिखने लगे थे। |