होली पर बिहारी के कुछ दोहे
उड़ि गुलाल घूँघर भई तनि रह्यो लाल बितान। चौरी चारु निकुंजनमें ब्याह फाग सुखदान॥
फूलनके सिर सेहरा, फाग रंग रँगे बेस। भाँवरहीमें दौड़ते, लै गति सुलभ सुदेस॥
भीण्यो केसर रंगसूँ लगे अरुन पट पीत। डालै चाँचा चौकमें गहि बहियाँ दोउ मीत॥
रच्यौ रँगीली रैनमें, होरीके बिच ब्याह। बनी बिहारन रसमयी रसिक बिहारी नाह॥
- बिहारी
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