आ जा सुर में सुर मिला ले, यह मेरा ही गीत है, एक मन एक प्राण बन जा, तू मेरा मनमीत है। सुर में सुर मिल जाए इतना, सुर अकेला न रहे, मैं भी मेरा न रहूँ और, तू भी तेरा न रहे, धड़कनों के साथ सजता, राग का संगीत है, एक मन एक प्राण बन जा, तू मेरा मनमीत है।
नीले-नीले इस गगन में, पंख धर कर उड़ चलें, चल कहीं पतझड़ में हम तुम, पुष्प बनकर खिल उठे, जो है खोता वो ही पाता, यह सदा की रीत है, एक मन एक प्राण बन जा, तू मेरा मनमीत है। सूने-सूने से पलों को, सुर-सुरभि से भर ज़रा, साथ अपने हर-इक मन को, छंद लयमय कर ज़रा, नेह से ही नेह पलता, प्रीत से ही प्रीत है, एक मन एक प्राण बन जा, तू मेरा मनमीत है।
साथ मिल कर गाएँ ऐसे, सुर लहर लहरा उठे, सप्त स्वर हर ओर गूँजे, हर दिशा भी गा उठे, प्रेम का पथ है अनोखा, हार में ही जीत है, एक मन एक प्राण बन जा, तू मेरा मनमीत है।
--विजयकुमार सिंह ऑस्ट्रेलिया
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