हिंदी चिरकाल से ऐसी भाषा रही है जिसने मात्र विदेशी होने के कारण किसी शब्द का बहिष्कार नहीं किया। - राजेंद्रप्रसाद।
 
शहीदी दिवस | 23 मार्च
   
 

23 मार्च 'भगतसिंह, सुखदेव व राजगुरू' का बलिदानी-दिवस होता है। उन्हीं की समृति में यहां शहीदी-दिवस को समर्पित विशेष सामग्री प्रकाशित की गई है।

23 मार्च 1931 की रात भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु की देश-भक्ति को अपराध की संज्ञा देकर फाँसी पर लटका दिया गया। कहा जाता है कि मृत्युदंड के लिए 24 मार्च की सुबह तय की गई थी लेकिन किसी बड़े जनाक्रोश की आशंका से डरी हुई अँग्रेज़ सरकार ने 23 मार्च की रात्रि को ही इन क्रांति-वीरों की जीवनलीला समाप्त कर दी। रात के अँधेरे में ही सतलुज के किनारे इनका अंतिम संस्कार भी कर दिया गया।

'लाहौर षड़यंत्र' के मुक़दमे में भगतसिंह को फाँसी की सज़ा दी गई थी तथा केवल 24 वर्ष की आयु में ही, 23 मार्च 1931 की रात में उन्होंने हँसते-हँसते, 'इनक़लाब ज़िदाबाद' के नारे लगाते हुए फाँसी के फंदे को चूम लिया।

भगतसिंह युवाओं के लिए भी प्रेरणा स्रोत बन गए। वे देश के समस्त शहीदों के सिरमौर थे।


23 मार्च 'भगतसिंह, सुखदेव व राजगुरू' का बलिदानी-दिवस होता है। उन्हीं की समृति में यहां शहीदी-दिवस को समर्पित विशेष समग्री प्रकाशित की गई है।

भारत-दर्शन संकलन

 
 
Posted By pawan kumar kirori   on  Thursday, 16-02-2017
लीडर वह है जो बिना मतलब हंगामा खड़ा करने की बजाए बुराइयों को खत्म करने में अपना योगदान दें
Posted By kajal   on  Monday, 23-02-2015
बात तो सही है. हमें बस हमारी पुरानी परम्पराए व् संस्कृति को फिर से जागृत करना पड़ेगा और उसमे जितने भी उत्सवों का उल्लेख है सारे मनाने होंगे वो भी बिना किसी संकोच व् शर्म के...तभी बाकी किसी का विरोध करने की ज़रूरत ही नहीं पड़ेगी और रेप रोकने की या नारी शक्ति को बचाने की कोई ज़रूरत ही नहीं पड़ेगी. मुझे ये आर्टिकल बहोत ही पसंद आया.
 
 

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