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सब बुझे दीपक जला लूं
सब बुझे दीपक जला लूं
घिर रहा तम आज दीपक रागिनी जगा लूं!
क्षितिज कारा तोडकर अब
गा उठी उन्मत आंधी,
अब घटाओं में न रुकती
लास तन्मय तडित बांधी,
धूल की इस वीणा पर मैं तार हर त्रण का मिला लूं!
भीत तारक मूंदते द्रग
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