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सजनवा के गाँव चले
सूरज उगे या शाम ढले,
मेरे पाँव सजनवा के गाँव चले।
सपनों की रंगीन दुनियाँ लिये,
प्यासे उर में वसन्ती तमन्ना लिये।
मेरे हँसते अधर, मेरे बढ़ते कदम,
अश्रुओं की सजीली सी लड़ियाँ लिये।
कोई हँसे या कोई जले,
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चिड़िया फुर्र
अभी दो चार दिनों से देवम के घर के बरामदे में चिड़ियों की आवाजाही कुछ ज्यादा ही हो गई थी। चिड़ियाँ तिनके ले कर आती, उन्हें ऊपर रखतीं और फिर चली जातीं दुबारा, तिनके लेने के लिये।
लगातार ऐसा ही होता, कुछ तिनके नीचे गिर जाते तो फर्श गंदा हो जाता। पर इससे चिड़ियों को क्या ? उनका तो निर्माण का कार्य चल रहा है, नीड़ निर्माण का कार्य। उन्हें गन्दगी से क्या लेना-देना।
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पीछे मुड़ कर कभी न देखो
पीछे मुड़ कर कभी न देखो, आगे ही तुम बढ़ते जाना,
उज्ज्वल ‘कल’ है तुम्हें बनाना, वर्तमान ना व्यर्थ गँवाना।
संधर्ष आज तुमको करना है,
मेहनत में तुमको खपना है।
दिन और रात तुम्हारे अपने,
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मैंने जाने गीत बिरह के
मैंने जाने गीत बिरह के, मधुमासों की आस नहीं है,
कदम-कदम पर मिली विवशता, साँसों में विश्वास नहीं है।
छल से छला गया है जीवन,
आजीवन का था समझौता।
लहरों ने पतवार छीन ली,
नैया जाती खाती गोता।
किस सागर जा करूँ याचना, अब अधरों पर प्यास नहीं है,
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नानी वाली कथा-कहानी
नानी वाली कथा-कहानी, अब के जग में हुई पुरानी।
बेटी-युग के नए दौर की, आओ लिख लें नई कहानी।
बेटी-युग में बेटा-बेटी,
सभी पढ़ेंगे, सभी बढ़ेंगे।
फौलादी ले नेक इरादे,
खुद अपना इतिहास गढ़ेंगे।
देश पढ़ेगा, देश बढ़ेगा, दौड़ेगी अब, तरुण जवानी।
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सूरज दादा कहाँ गए तुम
सूरज दादा कहाँ गए तुम,
काहे ईद का चाँद भए तुम।
घना अँधेरा, काला - काला,
दिन निकला पर नहीं उजाला।
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बगीचा
मेरे घर में बना बगीचा,
हरी घास ज्यों बिछा गलीचा।
गेंदा, चम्पा और चमेली,
लगे मालती कितनी प्यारी।
मनीप्लान्ट आसोपालव से,
सुन्दर लगती मेरी क्यारी।
छुई-मुई की अदा अलग है,
छूते ही नखरे दिखलाती।
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चलो, करें जंगल में मंगल
चलो, करें जंगल में मंगल,
संग प्रकृति के जी लें दो पल।
बतियाएं कुछ अपने मन की,
और सुनें उनके जीवन की।
मन से मन की बात बताएं,
और प्रकृति में घुल मिल जाएं।
देखो झरने, क्या कुछ कहते,
कल-कल करते बहते रहते।
हँसकर फूल बुलाते हमको,
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जलाओ दीप जी भर कर
जलाओ दीप जी भर कर,
दिवाली आज आई है।
नया उत्साह लाई है,
नया विश्वास लाई है।
इसी दिन राम आये थे,
अयोध्या मुस्कुराई थी।
हुआ था राम का स्वागत,
खुशी चहुँ ओर छाई थी।
मना था जश्न घर-घर में,
उदासी खिलखिलाई थी।
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आया मधुऋतु का त्योहार
खेत-खेत में सरसों झूमे, सर-सर बहे बयार,
मस्त पवन के संग-संग आया मधुऋतु का त्योहार।
धानी रंग से रंगी धरा,
परिधान वसन्ती ओढ़े।
हर्षित मन ले लजवन्ती,
मुस्कान वसन्ती छोड़े।
चारों ओर वसन्ती आभा, हर्षित हिया हमार,
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