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लाल बहादुर शास्त्री | कविता
लालों में वह लाल बहादुर,
भारत माता का वह प्यारा।
कष्ट अनेकों सहकर जिसने,
निज जीवन का रूप संवारा।
तपा तपा श्रम की ज्वाला में,
उस साधक ने अपना जीवन।
बना लिया सच्चे अर्थों में,
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भूल कर भी न बुरा करना | ग़ज़ल
भूल कर भी न बुरा करना
जिस क़दर हो सके भला करना।
सीखना हो तो शमअ़ से सीखो
दूसरों के लिए जला करना।
रह के तूफ़ां में हम ने सीखा है
तेज़ लहरों का सामना करना।
भूल कर ही सही कभी 'राणा'
याद हम को भी कर लिया करना।
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हिन्दी ही अपने देश का गौरव है मान है
पश्चिम की सभ्यता को तो अपना रहे हैं हम,
दूर अपनी सभ्यता से मगर जा रहे हैं हम ।
इस रोशनी में कुछ भी हमें सूझता नहीं,
आँखें खुली हुई है मगर दीखता नहीं ।
इंगलिश का बोलबाला किया चाहते हैं हम
जो कुछ न चाहिए था किया चाहते हैं हम ।
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खेल हमारे
गुल्ली डंडा और कबड्डी,
चोर-सिपाही आँख मिचौली।
कुश्ती करना, दौड़ लगाना
है अपना आमोद पुराना।
खेल हमारे ऐसे होते,
ख़र्च न जिसमें पैसे होते।
मजा बहुत आता है इनमें,
बल भी बढ़ जाता है इनमें।
निर्धन और धनी सब खेलें,
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बड़ी नाज़ुक है डोरी | ग़ज़ल
बड़ी नाज़ुक है डोरी साँस की यह
कहीं टूटी तो बाकी क्या रहेगा
रखो तुम बंद चाहे अपनी घड़ियां
समय तो रात दिन चलता रहेगा
न जाने क्यों हमें यह लग रहा है
हमारे बाद सन्नाटा रहेगा
वृथा है आज, कल की फिक्र 'राणा'
जो कुछ होना है वह होता रहेगा
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प्रेम देश का... | ग़ज़ल
प्रेम देश का ढूंढ रहे हो गद्दारों के बीच
फूल खिलाना चाह रहे हो अंगारों के बीच
खतरनाक है इनके साए में चलना भी दोस्त
भरा हुआ बारूद ना होवे दीवारों के बीच
मनोयोग से ध्यान लगाए जरा बैठ कर देख
शायद सिसकी सच की सुन ले तू नारों के बीच
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जिस तरफ़ देखिए अँधेरा है | ग़ज़ल
जिस तरफ़ देखिए अँधेरा है
यह सवेरा भी क्या सवेरा है
हम उजाले की आस रखते थे
अब अँधेरा अधिक घनेरा है
दैन्य, दुख, दर्द, शोक कुंठाएं
इन सभी ने मनुज को घेरा है
तेरे मेरे का यह विवाद है क्या
कुछ न तेरा यहाँ न मेरा है
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मीठे बोल - डा राणा का बाल साहित्य
बच्चों के लिए लिखने वाले के पास बच्चों जैसा सरल एवं निश्छल मन भी होना चाहिए । प्राय: कहा जाता है कि बच्चों के लिए लिखने वालों की संख्या अधिक नहीं है । कुछ कलमकार बड़ों के साथ-साथ बच्चों के लिए भी लिखते रहते हैं । ऐसे कलमकारों में आप मेरी गणना भी कर सकते हैं । कुछ ऐसे भी कलमकार हैं जो लिखते ही बच्चों के लिए हैं । हरियाणा में ऐसे कलमकार के रूप में: श्री घमंडी लाल अग्रवाल ने अपनी विशेष पहचान बनाई है ।
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प्रतिपल घूंट लहू के पीना | ग़ज़ल
प्रतिपल घूँट लहू के पीना,
ऐसा जीवन भी क्या जीना ।
बहुत सरल है घाव लगाना,
बहुत कठिन घावों का सीना ।
छेड़ गया सोई यादों को,
सावन का मदमस्त महीना ।
पीठ न वीर दिखाते रण में,
छलनी भी हो जाये सीना ।
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बात हम मस्ती में ऐसी कह गए | ग़ज़ल
बात हम मस्ती में ऐसी कह गए,
होश वाले भी ठगे से रह गए।
कष्ट जीवन में हमारे थे बहुत,
हम मगर हँसते हुए सब सह गए।
बढ़ गए, आगे बढ़े जिन के कदम,
रह गए जो लोग पीछे रह गए।
लाख चाहा था कि आँखों में रहें,
किंतु विह्वल अश्रु फिर भी बह गए।
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