जिस तरफ़ देखिए अँधेरा है यह सवेरा भी क्या सवेरा है
हम उजाले की आस रखते थे अब अँधेरा अधिक घनेरा है
दैन्य, दुख, दर्द, शोक कुंठाएं इन सभी ने मनुज को घेरा है
तेरे मेरे का यह विवाद है क्या कुछ न तेरा यहाँ न मेरा है
उनका आना और आके चल देना जोगियों की तरह का फेरा है
कोई गुज़रा है चाँद सा जिसने पथ में आलोक सा बिखेरा है
बच के जाएं तो हम कहाँ 'राणा' हम को सौ मुश्किलों ने घेरा है
- डा. राणा प्रताप गन्नौरी 'राणा' |