देहात का विरला ही कोई मुसलमान प्रचलित उर्दू भाषा के दस प्रतिशत शब्दों को समझ पाता है। - साँवलिया बिहारीलाल वर्मा।
 
सुभाषिनी लता कुमार | फीजी

सुभाषिनी लता कुमार का जन्म फ़िजी में 22 जुलाई 1977 को हुआ था। आपने हिन्दी में एम.ए व इसके अतिरिक्त पोस्ट ग्रेजुएट डिप्लोमा इन एजुकेशन किया है। इस समय आप आई.सी.सी.आर स्कालर हैं और मैसूर विश्वविद्यालय से हिंदी में पीएच-डी कर रही हैं। आप भाषा और साहित्य विभाग, फिजी नेशनल यूनिवर्सिटी में हिंदी प्राध्यापक हैं।

आपने फीजी के प्राथमिक स्कूलों में 12 वर्ष तक अध्यापन तथा 8 वर्षों तक उच्य शिक्षा के क्षेत्र में अपनी सेवाएँ प्रदान की हैं।

हिंदी परिषद फीजी की पश्चिमी शाखा की सचिव हैं। फीजी हिंदी अध्यापक संघ की सदस्य हैं।

प्रकाशन: फीजी में हिंदी भाषा, साहित्य व संस्कृति पर आधारित विभिन्न लेखों का प्रकाशन, फीजी हिंदी कहानी 'फंदा, फीजी के समाचार शांतिदूत में अनेक प्रकाशित रचनाएँ प्रकाशित। फीजी हिंदी काव्य साहित्य पर अनेक राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रपत्र पढ़े हैं।

सम्मान : 2016 में सृजन लोक, आरा, बिहार द्वारा हिन्दी सेवी सम्मान 2018 में द. मा. हि सभा मद्रास एवं वैश्विक सांस्कृतिक वैज्ञानिक परिषद, मुम्बई द्वारा हिंदी सेवी सम्मान

ई-मेल: subashnilata1977@gmail.com

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फंदा

[फीजी से फीजी हिंदी में लघुकथा]

दुकान में सबरे से औरतन के लाइन लगा रहा। कोई बरौनी बनवाए, कोई फेसिअल कराए, कोई बार कटवाए, कोई कला कराए, तो कोई नेल-पेंट लगवाए के लिए अगोरत रहिन। दुकान के पल्ला भी खुले नई पाइस रहा कि द्वारी पे तीन औरत खड़ी अगोरत रहिन। वैसे सुक और सनिच्चर बीज़ी रोज रहे लेकिन ई रकम बिज़ी तो हम लोग कभी नहीं रहा। पतानी आज इनके सजे-सपरे के कौन भूत सवार होइगे।

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फीजी कितना प्यारा है

प्रशांत महासागर से घिरा
चमचमाती सफ़ेद रेतों से भरा
फीजी द्वीप हमारा
देखो, कितना प्यारा है!
सर्वत्र छाई हरयाली ही हरयाली
फल-फूलों से भरी डाली-डाली
फसलों से लहराते गन्ने के खेतों में
गुणगुनाती मैना प्यारी है
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आरजू

इंतजार की आरजू अब नहीं रही
खामोशियों की आदत हो गई है,
न कोई शिकवा है न शिकायत
अजनबियों सी हालत हो गई है।

चुभती रहती चाँदनी
बड़ी कठिन ये रात हो गई है,
एक तेज हूक उठती है मन में मेरे
खुशी भी इतेफाक हो गई है।

अब है तो सिर्फ तन्हाई
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‘फीजी हिंदी’ साहित्य एवं साहित्यकार: एक परिदृश्य

‘फीजी हिंदी’ फीजी में बसे भारतीयों द्वारा विकसित हिंदी की नई भाषिक शैली है जो अवधी, भोजपुरी, फीजियन, अंग्रेजी आदि भाषाओं के मिश्रण से बनी है। फीजी के प्रवासी भारतीय मानक हिंदी की तुलना में, फीजी हिंदी भाषा में अपनी भाव-व्यंजनाओं को अच्छी तरह से अभिव्यक्त कर पाते हैं। इसीलिए भारतवंशी साहित्यकारों ने अंग्रेजी भाषा के मोह को छोड़कर हिंदी में साहित्यिक कृतियाँ लिखनी प्रारंभ कीं। मातृभाषा के इसी प्रेम के फलस्वरूप फीजी हिंदी की साहित्यिक कृतियों का सृजन भी हुआ है, जिनमें रेमंड पिल्लई का ‘अधूरा सपना’ और सुब्रमनी का ‘डउका पुराण’ प्रमुख हैं।

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फीजी के प्रवासी भारतीय साहित्यकार प्रो. बृज लाल की दृष्टि

अकादमिक स्वर्गीय प्रो. बृज लाल का नाम फीजी तथा दक्षिण प्रशान्त महासागर के प्रतिष्ठित साहित्यकारों की अग्रीम श्रेणी में लिया जाता है। उनके पूर्वज गिरमिटिया मजदूर के रूप में सन् 1908 में भारत से लगभग 12000 हजार किलोमीटर दूर फीजी द्वीप आकर बस गए। प्रो. बृजलाल के उत्थान की कहानी फीजी के एक साधारण गाँव के स्कूल ‘ताबिया सनातन धर्म’ से शुरू होती है। उन्होंने अपनी शिक्षा और कड़ी मेहनत के बल पर ऑस्ट्रेलियन राष्ट्रीय विश्वविद्यालय में प्रशांत और एशियाई इतिहास के एमेरिटस प्रोफेसर का पद संभाला तथा अपने लेखन के माध्यम से प्रवासी भारतीयों के इतिहास को रचनात्मक रूप प्रदान किया है।

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गिरमिटियों को श्रद्धांजलि (भाग 2)‘ का लोकार्पण

नरेश चंद की ऑडियो सीडी ‘गिरमिट गाथा- गिरमिटियों को श्रद्धांजलि (भाग 2)‘ का लोकार्पण

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श्रीमती सुक्लेश बली से डॉ. सुभाषिनी कुमार की बातचीत

फीजी में हिंदी शिक्षण का अलख जगाती हिंदी सेवी श्रीमती सुकलेश बली से साक्षात्कार


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