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Total Number Of Record :2काठ का घोड़ा
चलता नहीं काठ का घोड़ा!
माँ चिंतित होंगी, ले चल घर, देख बचा दिन थोड़ा
सोने की थी बनी अटारी,
हाय! लगाई थी फुलवारी,
फूल रही थी क्यारी-क्यारी,
फल से लदे वृक्ष थे पर मैंने न एक भी तोड़ा ।
छोड़ दिया सुख-दुख क्षण भर में,
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पथिक
पथिक हूँ,— बस, पथ है घर मेरा।
बीत गए कितने युग चलते किया न अब तक डेरा।
नित्य नया बनकर मिलता है, वही पुराना साथी,
निश्चित सीमा के भीतर ही लगा रहा हूँ फेरा।
हैं गतिमान सभी जड़-चेतन, थिर है कौन बता दे?
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