आँखें बरबस भर आती हैं, जब मन भूत के गलियारों में विचरता है। सोच उलझ जाती है रिश्तों के ताने-बाने में, एक नासूर सा इस दिल में उतरता है।
भीड़ में अकेलेपन का अहसास दिल को खलता है, जीवन की भुल-भुलैया में अस्तित्व खोया सा लगता है। अपनों के बेगाने होने का दर्द हरदम टीसता है, शून्य में खो जाने का हर क्षण अंदेशा रहता है।
मगर नादान मन तू क्यों नहीं समझता, जीवन में सबको कामधेन्,कल्पतरु पारसमणि और अमृत नहीं मिलता।
- रीता कौशल, ऑस्ट्रेलिया PO Box: 48 Mosman Park WA-6912 Australia Ph: +61-402653495 E-mail: rita210711@gmail.com
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