जो फूल चमन पर संकट देख रहा सोता मिट्टी उस को जीवन-भर क्षमा नहीं करती ।
थोड़ा-सा अंधियारा भी उसको काफी है जो दीप विभाजित मन से शस्त्र उठाता है जिनके घर मतभेदों पर सुमन नहीं चढ़ते अंधड उनके आगे आते घबराता है । तूफान देख जिसने दरवाजे बंद किए आधी उसके घर आते हुए नहीं डरती ।
करना चाहे इंसान मगर वह हो न सके इतना मुश्किल कोई भी काम नहीं होता, जब तक पतझर अपने घर लौट नहीं जाते चौकस रहना तब तक विश्राम नहीं होता । जो दुष्ट बवंडर को ललकार नहीं सकता उसकी नौका धारा के पार नहीं तरती ।
दुनिया में कोई अधिक देश से बड़ा नहीं, धरती पुरखों की पुण्य धरोहर होती है रहता हो चाहे कहीं नहीं अंतर आता हर व्यक्ति उसी माला का सच्चा मोती है । जो काम देश के आया नहीं मुसीबत में कहते भी पुत्र उसे शरमाती है धरती ।
- रामावतार त्यागी
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