एक आलोचक ने लिखा है कि इतिहास में सब-कुछ यथार्थ होते हुए भी वह असत्य है, और कथा-साहित्य में सब-कुछ काल्पनिक होते हुए भी वह सत्य है ।
इस कथन का आशय इसके सिवा और क्या हो सकता है कि इतिहास आदि से अन्त तक हत्या, संग्राम और धोखे का ही प्रदर्शन है, जो सुंदर है इसलिए असत्य है । लोभ की क्रूर से क्रूर, अहंकार की नीच से नीच, ईर्षा की अधम से अधम घटनाएं आपको वहाँ मिलेगी, और आप सोचने लगेगे, 'मनुष इतना अमानुष है ! थोड़े से स्वार्थ के लिए भाई भाई की हत्या कर डालता है, बेटा बाप की हत्या कर डालता, है और राजा असंख्य प्रजाओं की हत्या कर डालता है!' उसे पढ़कर मन में ग्लानि होती है आनन्द नहीं, और जो वस्तु आनन्द नहीं प्रदान कर सकती वह सुंदर नहीं हौ सकती, और जो सुन्दर नहीं हो सकती वह सत्य भी नहीं हो सकती । जहाँ अानंद है वही सत्य है । साहित्य काल्पनिक वस्तु है पर उसका प्रधान गुण है आनंद प्रदान करना, और इसलिए वह सत्य है ।
मनुष्य ने जगत में जो कुछ सत्य और सुन्दर पाया है और पा रहा है उसी को साहित्य कहते हैं, और कहानी भी साहित्य का एक भाग है ।
मनुष्य-जाति के लिए मनुष्य ही सबसे विकट पहेली है । वह खुद अपनी समझ में नहीं आता । किसी न किसी रूपु में वह अपनी ही आलोचना किया करता है -अपने ही मनोरहस्य खोला करता है ।
क्रमश:
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