जो साहित्य केवल स्वप्नलोक की ओर ले जाये, वास्तविक जीवन को उपकृत करने में असमर्थ हो, वह नितांत महत्वहीन है। - (डॉ.) काशीप्रसाद जायसवाल।

टेलीपैथी

 (काव्य) 
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रचनाकार:

 अलका सिन्हा

ऐन उसी वक्त
मोबाइल पर
बज उठा तुम्हारा नंबर
जब मैं तुम्हें याद कर रही थी

तो क्या सोच रहे थे
तुम भी वही
महसूस कर रहे थे
तुम भी वैसा ही

दस्तक दी थी
या कि तुम्हारी व्यस्तता के बीच
मेरी भावतीव्रता ने
कह सकते हो जिसे
टेलीपैथी

कि कागज़-कलम छोड़
मचलकर
उँगलियों ने तुम्हारी
मिला दिया था मेरा नंबर
अनायास ही...

- अलका सिन्हा

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