भारतमाता का यह मन्दिर, समता का संवाद यहाँ, सबका शिव-कल्याण यहाँ है, पावें सभी प्रसाद यहाँ। नहीं चाहिये बुद्धि वैरकी, भला प्रेम-उन्माद यहाँ, कोटि-कोटि कण्ठों से मिलकर,उठे एक जयनाद यहाँ । जाति,धर्म या सम्प्रदाय का, नहीं भेद-व्यवधान यहाँ, सबका स्वागत सबका आदर, सबका सम-सम्मान यहाँ। राम-रहीम, बुद्ध-ईसा का, सुलभ एक सा ध्यान यहाँ, भिन्न-भिन्न भव-संस्कृतियों के गुण-गोख का ज्ञान यहाँ । सब तीर्थो का एकतीर्थ यह, हृदय पवित्र बना लें हम, आओ यहाँ अजातशत्रु बन, सबको मित्र बना लें हम। रेखाएं प्रस्तुत हैं अपने, मन के चित्र बना लें हम, सौ-सौ आदर्शों को लेकर, एक चरित्र बना लें हम। मिला सत्य का हमें पुजारी, सफल काम उस न्यायी का, मुक्तिलाभ कर्तव्य यहाँ है, एक-एक अनुयायी का । बैठो माता के आँगन में, नाता भाई-भाई का, समझे उसकी प्रसव वेदना, वही लाल है माई का।
- मैथिलीशरण गुप्त
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