कोई नहीं पराया, मेरा घर संसार है।
मैं ना बँधा हूँ देश-काल की जंग लगी जंजीर में, मैं ना खड़ा हूँ जाति-पाति की ऊँची-नीची भीड़ में, मेरा धर्म ना कुछ स्याही-शब्दों का सिर्फ गुलाम है, मैं बस कहता हूँ कि प्यार है तो घट-घट में राम है, मुझ से तुम ना कहो कि मंदिर-मस्जिद पर मैं सर टेक दूँ,
मेरा तो आराध्य आदमी, देवालय हर द्वार है। कोई नहीं पराया, मेरा घर सारा संसार है।।
कहीं रहे कैसे भी मुझको प्यारा यह इन्सान है, मुझको अपनी मानवता पर बहुत-बहुत अभिमान है, अरे नहीं देवत्व, मुझे तो भाता है मनुजत्व ही, और छोड़कर प्यार नहीं स्वीकार सकल अमरत्व भी, मुझे सुनाओ तुम न स्वर्ग-सुख की सुकुमार कहानियाँ,
मेरी धरती सौ-सौ स्वर्गों से ज्यादा सुकुमार है। कोई नहीं पराया, मेरा घर सारा संसार है ।।
मुझे मिली है प्यास विषमता का विष पीने के लिए, मैं जन्मा हूँ नहीं स्वयँ-हित, जग-हित जीने के लिए, मुझे दी गई आग कि इस तम में मैं आग लगा सकूँ, गीत मिले इसलिए कि घायल जग की पीड़ा गा सकूँ, मेरे दर्दीले गीतों को मत पहनाओ हथकड़ी,
मेरा दर्द नहीं मेरा है, सबका हाहाकार है । कोई नहीं पराया, मेरा घर सारा संसार है ।।
मैं सिखलाता हूँ कि जिओ औ' जीने दो संसार को, जितना ज्यादा बाँट सको तुम बाँटो अपने प्यार को, हँसों इस तरह, हँसे तुम्हारे साथ दलित यह धूल भी, चलो इस तरह कुचल न जाये पग से कोई शूल भी, सुख, न तुम्हारा सुख केवल जग का भी उसमें भाग है,
फूल डाल का पीछे, पहले उपवन का श्रृंगार है। कोई नहीं पराया मेरा घर सारा संसार है ।।
- नीरज
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