मेरे उर में जो निहित व्यथा कविता तो उसकी एक कथा छंदों में रो-गाकर ही मैं, क्षण-भर को कुछ सुख पा जाता मैं सूने में मन बहलाता।
मिटने का है अधिकार मुझे है स्मृतियों से ही प्यार मुझे उनके ही बल पर मैं अपने, खोए प्रीतम को पा जाता मैं सूने में मन बहलाता।
कहता क्या हूँ, कुछ होश नहीं मुझको केवल संतोष यही मेरे गायन-रोदन में जग, निज सुख-दुख की छाया पाता मैं सूने में मन बहलाता।
-शिवमंगलसिंह 'सुमन'
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