मैं महाराष्ट्री हूँ, परंतु हिंदी के विषय में मुझे उतना ही अभिमान है जितना किसी हिंदी भाषी को हो सकता है। - माधवराव सप्रे।
 
कहानी - आलेख (विविध)     
Author:मुंशी प्रेमचंद | Munshi Premchand

एक आलोचक ने लिखा है कि इतिहास में सब-कुछ यथार्थ होते हुए भी वह असत्य है, और कथा-साहित्य में सब-कुछ काल्पनिक होते हुए भी वह सत्य है ।

इस कथन का आशय इसके सिवा और क्या हो सकता है कि इतिहास आदि से अन्त तक हत्या, संग्राम और धोखे का ही प्रदर्शन है, जो सुंदर है इसलिए असत्य है । लोभ की क्रूर से क्रूर, अहंकार की नीच से नीच, ईर्षा की अधम से अधम घटनाएं आपको वहाँ मिलेगी, और आप सोचने लगेगे, 'मनुष इतना अमानुष है ! थोड़े से स्वार्थ के लिए भाई भाई की हत्या कर डालता है, बेटा बाप की हत्या कर डालता, है और राजा असंख्य प्रजाओं की हत्या कर डालता है!' उसे पढ़कर मन में ग्लानि होती है आनन्द नहीं, और जो वस्तु आनन्द नहीं प्रदान कर सकती वह सुंदर नहीं हौ सकती, और जो सुन्दर नहीं हो सकती वह सत्य भी नहीं हो सकती । जहाँ अानंद है वही सत्य है । साहित्य काल्पनिक वस्तु है पर उसका प्रधान गुण है आनंद प्रदान करना, और इसलिए वह सत्य है ।

मनुष्य ने जगत में जो कुछ सत्य और सुन्दर पाया है और पा रहा है उसी को साहित्य कहते हैं, और कहानी भी साहित्य का एक भाग है ।

मनुष्य-जाति के लिए मनुष्य ही सबसे विकट पहेली है । वह खुद अपनी समझ में नहीं आता । किसी न किसी रूपु में वह अपनी ही आलोचना किया करता है -अपने ही मनोरहस्य खोला करता है ।

क्रमश:

 

Previous Page  | Index Page  |   Next Page
 
 
Post Comment
 
 
 

सब्स्क्रिप्शन

इस अंक में

 

इस अंक की समग्र सामग्री पढ़ें

 

 

सम्पर्क करें

आपका नाम
ई-मेल
संदेश