जिस देश को अपनी भाषा और अपने साहित्य के गौरव का अनुभव नहीं है, वह उन्नत नहीं हो सकता। - देशरत्न डॉ. राजेन्द्रप्रसाद।
 
हे दयालु ईश मेरे दुख मेरे हर लीजिए | भजन (काव्य)     
Author:रोहित कुमार 'हैप्पी' | न्यूज़ीलैंड

हे दयालु ईश मेरे दुख मेरे हर लीजिए
दूं परीक्षा लंबी कितनी, कुछ तो करुणा कीजिए।
हे दयालु ईश मेरे दुख मेरे हर लीजिए ।।

सुख के साथी थे हजारों, दुख में बंधु इक नहीं,
संकटों की इस घड़ी में, आप तो सुध लीजिए।
हे दयालु ईश मेरे, कुछ तो धीरज दीजिए ।
हे दयालु ईश मेरे दुख मेरे हर लीजिए ।।

मांगता ना ज्यादा कुछ भी, जो मिला मैं खुश रहूं
इसमें भी करते कटौती, ऐसा ना भगवन कीजिए।
हे दयालु ईश मेरे करुणा मुझपर कीजिए ।
हे दयालु ईश मेरे दुख मेरे हर लीजिए ।।

जो भरोसा है तुम्हारा, मत कभी इसे तोड़िए
दुनिया हमसे रूठे सारी, आप ना मुख मोड़िए।
आप ही का ध्यान हो बस, तार ऐसी जोड़िए।
हे दयालु ईश मेरे दुख मेरे हर लीजिए ।।

-रोहित कुमार 'हैप्पी'

 

Previous Page   Next Page
 
 
Post Comment
 
 
 

सब्स्क्रिप्शन

इस अंक में

 

इस अंक की समग्र सामग्री पढ़ें

 

 

सम्पर्क करें

आपका नाम
ई-मेल
संदेश