टूटें न तार तने जीवन-सितार के।
ऐसा बजाओ इन्हें प्रतिभा की ताल से किरनों से कुंकुम से सेंदुर-गुलाल से लज्जित हो युग का अँधेरा निहार के !
ऐसा बजाओ इन्हें ममता की ज्वाल से फूलों की उँगली के कोमल प्रवाल से पूरे हों सपने अधूरे सिंगार के।
ऐसा बजाओ इन्हें सौरभ के श्वास से, आशा की भाषा से, यौवन के हास से छाया बसन्त रहे उपवन में प्यार के। टूटें न तार तने जीवन-सितार के।
-केदारनाथ अग्रवाल |