सूनी सड़कों पर ये आवारा पाँव माथे पर टूटे नक्षत्रों की छाँव कब तक आखिर कब तक ?
चिन्तित माथे पर ये अस्तव्यस्त बाल उत्तर पच्छिम, पूरब, दक्खिन- दीवाल कब तक आखिर कब तक ?
लड़ने वाली मुट्ठी जेबों में बन्द नया दौर लाने में असफल हर छन्द कब तक आखिर कब तक?
-डॉ॰ धर्मवीर भारती |