आरी नींद लाल को आजा। उसको करके प्यार सुलाजा॥ तुझे लाल है ललक बुलाते। अपनी आँखों पर बिठलाते॥ तेरे लिये बिछाई पलकें। बढ़ती ही जाती हैं ललकें॥ क्यों तू है इतनी इठलाती। आ आ मैं हूँ तुझे बुलाती॥ गोद नींद की है अति प्यारी। फूलों से है सजी संवारी॥ उसमें बहुत नरम मन भाई। रुई की है पहल जमाई॥ बिछे बिछौने हैं मखमल के। बड़े मुलायम सुन्दर हलके॥ जो तू चाह लाल उसकी कर। तो तू सोजा आँख मूंद कर॥ मीठी नींदों प्यारे सोना। सोने की पुतली मत खोना॥ उसकी करतूतों के ही बल। ठीक ठीक चलती है तन कल॥
-अयोध्यासिंह उपाध्याय 'हरिऔध' |