मैं महाराष्ट्री हूँ, परंतु हिंदी के विषय में मुझे उतना ही अभिमान है जितना किसी हिंदी भाषी को हो सकता है। - माधवराव सप्रे।
 
आ: धरती कितना देती है (काव्य)     
Author:सुमित्रानंदन पंत | Sumitranandan Pant
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