यदि स्वदेशाभिमान सीखना है तो मछली से जो स्वदेश (पानी) के लिये तड़प तड़प कर जान दे देती है। - सुभाषचंद्र बसु।
 
आ: धरती कितना देती है (काव्य)     
Author:सुमित्रानंदन पंत | Sumitranandan Pant
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