आ तुझको दिखाऊँ मैं अपने ठाठ फ़क़ीराना फाकों से पेट भरना और फिर भी मुसकुराना। आ तुझको दिखाऊँ मैं--------
मजलिस में जब भी बैठा गाये हैं गीत खुलकर कह ले मुझे तू पगला या कह ले तू दीवाना। आ तुझको दिखाऊँ मैं--------
मैं गीत उसके गाऊँ जो दिल में मेरे बसता जो दिल में मेरे बसता, बोलों में मेरे बसता अब छोड़ कैसे दूँ मैं अंदाज़ कबीराना। आ तुझको दिखाऊँ मैं--------
खुशियाँ भी लगती अच्छी, ग़म भी हैं मुझको अपने आँखें खुली हैं मेरी सतरंगी उनमें सपने। बात क्या नयी है, दुनिया है देखीभाली अंजान सा दिखूँ पर मैं हूँ नहीं अंजाना। आ तुझको दिखाऊँ मैं--------
- रोहित कुमार 'हैप्पी' ई-मेल: editor@bharatdarshan.co.nz
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