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उतने सूर्यास्त के उतने आसमान उनके उतने रंगलम्बी सड़कों पर शामधीरे बहुत धीरे छा रही शामहोटलों के आसपासखिली हुई रोशनीलोगों की भीड़दूर तक दिखाई देते उनके चेहरे उनके कंधे, जानी-पहचानी आवाज़ेंकभी लिखेंगे कवि इसी देश में इन्हें भी घटनाओं की तरह।
-आलोक धन्वा
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