यहाँ प्रेमचंद के बारे में कुछ जानकारी प्रकाशित कर रहे हैं। हमें आशा है कि पाठकों को भी यह जानकारी लाभप्रद होगी।
-प्रेमचंद ने 15 उपन्यास, 300 से अधिक कहानियाँ, 3 नाटक, 10 अनुवाद, 7 बाल पुस्तकें तथा हजारों पृष्ठों के लेख, भाषण, सम्पादकीय, भूमिकाएं व पत्र इत्यादि की रचना की।
-ज़माना के संपादक दयानारायण को लिखे एक पत्र में प्रेमचंद ने लिखा है कि उनकी साहित्यिक जीवन 1901 से आरम्भ हुआ। 1904 में हिंदी उपन्यास 'प्रेमा लिखा'।
-प्रेमचंद ने 1907 में गल्प लिखना शुरू किया।
-सबसे पहले 1908 में उनका पाँच कहानियों का संग्रह, 'सोजे वतन' ज़माना-प्रेस से प्रकाशित हुआ। यह संग्रह उस समय प्रतिबंधित हो गया था।
-प्रेमचंद की पहली रचना एक नाटक थी जो उन्होंने अपने एक 'नाते के मामा' के प्रेमप्रंसग पर लिखी थी और शायद वह रचना उसी मामा के हाथ लग गई थी जिसे उसने नष्ट के दिया था। इस पहली रचना के समय प्रेमचंद की आयु तेरह बरस की थी।
-प्रेमचंद को 'उपन्यास सम्राट' कहने वाले पहले व्यक्ति थे महान साहित्यकार शरतचन्द्र चट्टोपाध्याय। शरत् बाबू के ऐसा कहने के बाद लोग प्रेमचंद को 'उपन्यास सम्राट' कहने लगे।
-प्रेमचंद का पहला विवाह पंद्रह वर्ष की आयु में हुआ था। उस समय वे नौंवी कक्षा में पढ़ते थे। 1904 में उनकी पहली पत्नी का देहांत हो गया।
-प्रेमचंद ने अपनी पहली नौकरी 1899 में चुनार के एक मिशनरी स्कूल में की। उन्हें वहाँ 18 रुपये प्रति मास वेतन मिलता था। धनपतराय ने यहाँ नौकरी के तो ली लेकिन आर्यसमाज के अनुयायी प्रेमचंद का मन ईसाईयों के बीच लगता न था। अंतत: 2 जुलाई 1900 को बहराइच के सरकारी स्कूल में नौकरी का प्रबंध कर लिया।
-'बड़े घर की बेटी' प्रेमचंद की प्रिय कहानियों में से एक थी।
-प्रेमचंद की निर्धनता की छवि सर्द्विदित है किंतु प्रेमचंद पर शोध करने वाले मदन गोपाल व डॉ कमल किशोर गोयनका का मानना है कि प्रेमचंद निर्धन नहीं थे। उन्होंने यह प्रमाणित करने के लिए अनेक तथ्य प्रस्तुत किए हैं।
-प्रेमचंद प. रतननाथ लखनवी व रबींद्रनाथ से प्रभावित थे।
-प्रेमचंद को लेखन से अच्छी आय होती थी तथापि उनके प्रकाशनों (हंस और जागरण) से उन्हें लगातार घाटा हुआ।
-प्रेमचंद दिल खोलकर प्रशंसा करते थे और दिल खोलकर निन्दा भी।
-प्रेमचंद को रबीन्द्रनाथ टैगोर के 'शांतिनिकेतन' से कई बार बुलावे आए लेकिन उनका जाना संभव न हो सका।
-रबीन्द्रनाथ चाहते थे कि प्रेमचंद की कहानियों का अनुवाद बँगला में हो।
-प्रेमचंद जितने हिंदी वालो के थे, उतने ही उर्दूवालों के भी थे।
-प्रेमचंद ने अपने नाम के आगे 'मुंशी' शब्द का प्रयोग स्वयं कभी नहीं किया। 'मुंशी' शब्द वास्तव में 'हंस' के संयुक्त संपादक कन्हैयालाल मुंशी के साथ लगता था। दोनों संपादको का नाम हंस पर 'मुंशी, प्रेमचंद' के रूप में प्रकाशित होता था। अत: मुंशी और प्रेमचंद दो अलग व्यक्ति थे लेकिन कई बार ऐसा भी हुआ कि प्रेस में 'कोमा' भूलवश न छपने से नाम 'मुंशी प्रेमचंद' छप जाता था और कालांतर में लोगों ने इसे एक नाम और एक व्यक्ति समझ लिया यथा प्रेमचंद 'मुंशी प्रेमचंद' नाम से लोकप्रिय हो गए।
-प्रेमचंद ने अपना प्रकाशन 'हंस' चलाते रहने के लिए कुछ दिन सिनेमा के लिए भी लिखा लेकिन शीघ्र ही उनका मोहभंग हो गया और वे वापिस घर लौट आए। फिल्मी जीवन के उनके अनुभव कटु रहे।
प्रस्तुति: रोहित कुमार 'हैप्पी'
संदर्भ :
कलम का मज़दूर [मदन गोपाल]
प्रेमचंद और उनका युग [ डा रामविलास शर्मा]