मतदान आने वाले, सरगर्मियाँ बढ़ीं।
झाँसे में हमको लेने फ़िर कुर्सियाँ बढ़ीं।।
देते चले गये हम हर रोज़ रिश्वतें
आगे ही आगे फ़िर तो सब अर्ज़ियाँ बढ़ीं।।
शहरों में आ गये जब बाशिंदे गाँवों के
फ़िर बेहिसाब शहरों की बस्तियाँ बढ़ीं।।
लेनी सलाह छोड़ी जबसे बुज़ुर्गों से
तबसे हमारी ज़्यादा ही ग़लतियाँ बढ़ीं।।
सडकें तमाम टूटीं सब बाढ़ में बहीं
करने मदद को आख़िर पगडंडियाँ बढ़ीं।।
- संजय तन्हा
ग्राम-दयालपुर, बल्लबगढ़
फरीदाबाद (हरियाणा)
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