मशगूल हो गए वो, सब जश्न मनाने में
मेरे पाँव में हैं छाले, घर चलकर जाने में
सुन! पेट नहीं भरता, कभी भाषण-नारों से
भूखे चिल्लाते हैं, हमें दो कुछ खाने में
सावन के अंधों को, सब हरा दिखायी दे
वे पूरे माहिर हैं ‘लाल' को ‘हरा' बताने में
सब अच्छा होता है, सब अच्छा ही होगा
क्या उनका घटता है, यह पाठ सुनाने में
भूखों को दिए भाषण, भटकों को दिए सपने
तुम्हें लाज नहीं आती मेरा दर्द भुनाने में
- रोहित कुमार 'हैप्पी', न्यूज़ीलैंड