आपने अब तक अपने जीवन में अनगिनत यात्राएं की होगी लेकिन किन्हीं कारणवश आप अमरनाथ की यात्रा नहीं कर पाएं है तो आपको एक बार बर्फ़ानी बाबा के दर्शनों के लिए अवश्य जाना चाहिए। दम निकाल देने वाली खड़ी चढ़ाइयां, आसमान से बातें करती, बर्फ़ की चादर में लिपटी-ढंकी पर्वत श्रेणियां, शोर मचाते झरने, बर्फ़ की ठंडी आग को अपने में दबाये उद्दंड हवाएं जो आपके जिस्म को ठिठुरा देने का माद्दा रखती हैं। कभी बारिश आपका रास्ता रोककर खड़ी हो जाती है तो कहीं नियति नटी अपने पूरे यौवन के साथ आपको सम्मोहन में उलझा कर आपका रास्ता भ्रमित कर देती है। वहीं असंख्य शिव-भक्त बाबा अमरनाथ के जयघोष के साथ, पूरे जोश एवं उत्साह के साथ आगे बढ़ते दिखाई देते हैं और आपको अपने साथ भक्ति की चाशनी में सराबोर करते हुए आगे, निरन्तर आगे बढ़ते रहने का मंत्र आपके कानों में फूँक देते हैं। कुछ थोड़े से लोग जो शारीरिक रुप से अपने आपको इस यात्रा के लिए अक्षम पाते हैं, घोड़े की पीठ पर सवार होकर बाबा का जयघोष करते हुए खुली प्रकृति का आनन्द उठाते हुए, अपनी यात्राएं संपन्न करते हैं। सारी कठिनाइयों के बावजूद न तो वे हिम्मत हारते हैं और न ही उनका मनोबल डिगता है। प्रकृति निरन्तर आगे बढ़ते रहने के लिए आपको प्रेरित करती है। रास्ते में जगह-जगह भंडारे वाले आपका रास्ता, बड़ी मनुहार के साथ रोकते हुए, हाथ जोड़कर विनती करते हैं कि बाबा की प्रसादी खाकर ही जाइए। भंडारे में आपको आपके मन पसंद व्यंजन खाने को मिलेंगे। कहीं कढ़ाहे में केसर डला दूध औट रहा है, तो कहीं इमरती सिक रही होती है। बरफ़ी, पेड़ा, बूंदी, कचौडियां और न जाने कितने ही व्यंजन आपको खाने को मिलेंगे, वो भी बिना कोई कीमत चुकाए।
ऐसा नहीं है कि यह नजारा आपको एकाध जगह देखने को मिले। आप अपनी यात्रा के प्रथम बिन्दु से चलते हुए अन्तिम पड़ाव तक, शिवभक्तों की इस निष्काम सेवा को अपनी आँखों से देख सकते है। हमारी बस को जब एक भंडारे वाले( अब नाम याद नहीं आ रहा है) ने रोकते हुए हमसे प्रसादी ग्रहण करने की विनती की, तो भला हममें इतनी हिम्मत कहाँ थी कि हम उनका अनुरोध ठुकरा सकते थे। काफ़ी आतिथ्य-सत्कार एवं सुस्वादु प्रसाद ग्रहण कर ही हम आगे बढ़ पाए थे। मन तो सदैव शंका पाले रखने का अभ्यस्त होता है। मेरे मन में एक शंका बलवती होने लगी कि ये भंडारे वाले, अगम्य ऊँचाइयों पर जहाँ आदमी का पैदल चलना दूभर हो जाता है, यात्रा के शुरुआत से पहले अपने लोगों को साथ लेकर अपने-अपने पंडाल तान देते है। रसोई पकाने में क्या कुछ नहीं लगता, वे हर छोटी-बड़ी सामग्री ले कर इन ऊँचाइयों पर अपने पंडाल डाले यात्रियों की राह तकते हैं और पूरी निष्ठा और श्रद्धा के साथ सभी की खातिरदारी करते हैं। वे इस यात्रा के दौरान लाखों रुपया खर्च करते हैं। भला इन्हें क्या हासिल होता होगा? क्यों ये अपना परिवार छोड़कर, काम-धंधा छोड़कर यात्रा की समाप्ति तक यहाँ रुकते हैं? भगवान भोले नाथ इन्हें भला क्या देते होंगे?
मन में उठ रहे प्रश्न का उत्तर जानना मेरे लिए आवश्यक था। मैंने एक भक्त से इस प्रश्न का उत्तर जानना चाहा तो वह चुप्पी लगा गया। शायद वह अपने आपको अन्दर ही अन्दर तौल रहा था कि क्या कहे। काफ़ी देर तक चुप रहने के बाद उसने हौले से मुंह खोला और बतलाया कि वह एक अत्यन्त ही गरीब परिवार से है। रोजी-रोटी की तलाश में दिल्ली आ गया। छोटा-मोटा काम शुरु किया। सफलता रुठी बैठी रही। समझ में नहीं आ रहा था कि क्या किया जाए? किसी शिव-भक्त ने मुझसे कहा-भोले भंडारी से मांगो। वे सभी को मनचाही वस्तु प्रदान करते हैं। बस, उसके प्रति सच्ची लगन और श्रद्धा होनी चाहिए। मैंने अपने व्यापार को फलने-फूलने का वरदान मांगा और कहा कि उससे होने वाली आय का एक बड़ा हिस्सा वह शिव-भक्तों के बीच खर्च करेगा। बस क्या था। देखते-देखते मेरी किस्मत चमक उठी और मैं यहां आने लगा। मेरी कोई संतान नहीं थी। मैंने शिवजी से प्रार्थना की और आने वाले साल पर मेरी मनोकामना पूरी हुई। इतना बतलाते हुए उसके शरीर में रोमांच हो आया था और उसकी आँखों से अविरल अश्रुधारा बह निकली थी।
इससे ज्ञात होता है कि यहाँ आने वाले सभी शिव भक्तों को भोले भंडारी खाली हाथ नहीं लौटाते। शायद यह एक प्रमुख कारण है कि यहाँ प्रतिवर्ष लाखों की संख्या में शिवभक्त आते है। यह संख्या निरन्तर बढ़ती ही जा रही है। दूसरा कारण तो यह भी है कि बर्फ़ का शिवलिंग केवल इन्हीं दिनों बनता है और हर कोई इस अद्भुत शिवलिंग के दर्शन कर अपने जीवन को कृतार्थ करना चाहता है। तीसरी खास वजह यह भी है कि लोग अपनी आँखों से प्रकृति का नैसर्गिक सौंदर्य देखना चाहते है। जो शिवभक्त हिम से बने शिवलिंग के दर्शन कर अपने जीवन को धन्य बनाना चाहते हैं, उन्हें जम्मू पहुँचना होता है। जम्मू रेलमार्ग-सड़कमार्ग तथा हवाई मार्ग से देश के हर हिस्से से जुड़ा हुआ है।
जम्मू से पहलगाम ( 297 कि.मी. )
जम्मू से पहला पड़ाव पहलगाम है। यात्री टैक्सी द्वारा नगरोटा- दोमल- उधमपुर- कुद- पटनीटाप- बटॊट- रामबन-बनिहाल- तीथर- तथा जवाहर सुरंग होते हुए पहलगाम पहुँचते हैं। पहलगाम नूनवन के नाम से भी जाना जाता है। यह एक अत्यन्त सुन्दर रमणीय स्थान है। जनश्रुति के अनुसार भगवान शिव माँ पार्वती को अमरकथा का रहस्य सुनाने के लिए एक ऐसे स्थान का चयन करना चाहते थे, जहाँ अन्य कोई प्राणी उसे न सुन सके। ऐसे स्थान की तलाश करते-करते शिव पहलगाम पहुँचे थे। यह वह स्थान है, जहाँ उन्होंने अपने वाहन नंदी का परित्याग किया था। इस स्थान प्राचीन नाम बैलगाम था जो क्षेत्रीय भाषा में बदलकर पहलगाम हो गया। यात्री यहाँ भण्डारे में भोजन कर रात्रि विश्राम करते हैं।
पहलगाम से चन्दनवाड़ी (16 कि.मी.)
यात्री सुबह चाय-पानी पीकर टैक्सी द्वारा चन्दनवाड़ी पहुँचते हैं। चन्दनवाड़ी के बारे में मान्यता है कि भोलेनाथ ने अपने माथे का चन्दन यहां छोड़ा था। यहाँ से कुछ दूरी पर प्रकृति द्वारा निर्मित 100 मीटर लंबा पुल है, जो लिद्दर नदी के ऊपर बना है। पर्वत श्रृंखलाएं यहां अपना रुप-रंग बदलती जाती है। आगे की यात्रा थोड़ी कठिन है, जिसे घोड़े द्वारा तय किया जा सकता है।
चन्दनवाडी से शेषनाग (13 कि.मी.)
चन्दनवाड़ी से शेशनाग के लिए यह रास्ता काफ़ी कठिन तथा सीधी चढ़ाई वाला है। पिस्सु घाटी होते हुए लिद्दर नदी के किनारे-किनारे मनोहर दृष्यों को निहरते हुए यात्री शेषनाग पहुँचता है। यह स्थल झेलम नदी का उदगम स्थल है, जिसे शेषनाग सरोवर भी कहते हैं। पहली झलक में यूं प्रतीत होता है कि कोई विशाल फ़णीधर (शेषनाग) कुण्डली मारे बैठा हो। झील के पार्श्व में खड़ी ब्रह्मा-विष्णु-महेश नाम की तीन चोटियाँ प्रकृति का एक महान चमत्कार ही है। इस झील का पानी नीला है। ऐसी मान्यता है कि भगवान शिव ने अपने गले के शेषनाग का यहाँ परित्याग किया था। इसी कारण इसका नाम शेषनाग झील पड़ा। चारों ओर बर्फ़ से ढंकी पहाड़ियों को निहार कर यात्री धन्य हो जाता है। झील से थोड़ा आगे यात्रियों को रात्रि विश्राम करना होता है। यहाँ जगह-जगह भण्डारे लगे होते हैं, जहाँ यात्री अपनी पसंद के सुस्वादु भोजन से तृप्त हो जाता है।
शेषनाग से पंचतरणी (12.6 कि.मी.)
सुबह होते ही यात्री चाय-पानी-नाश्ता कर पंचतरणी की ओर प्रस्थान करता है। मार्ग में महागुनस पर्वत है जिसकी ऊँचाई 14500 फीट है। महागुनस पर्वत अपने आप में एक आश्चर्य है। हरे-भूरे, कभी-कभी सिन्दुरी रंग में दिखाई देने वाले इस विशाल पर्वत तथा उस पर जमी बर्फ़ की परतों से सूरज की किरणें परावर्तित होकर लौटती है तो यह किसी बड़े हीरे की तरह जगमगाता दिखता है। यहाँ पहुँचते-पहुँचते अधिक ऊँचाई पर होने की वजह से आक्सीजन की मात्रा में कमी होने लगती है, जिससे यात्री को सांस लेने में कठिनाई होती है। एक कदम आगे बढ़ाना भी दुश्वार-सा लगाने लगता है। अतः यात्री को चाहिए कि वह यहां बैठकर थोड़ा सुस्ता ले और अपने आप को सामान्य स्थिति में ले आए। कपूर की डली भी उसे पास में रखनी चाहिए। उसे सूंघने से राहत मिलती है। यहाँ जोर आजमाइश करने की जरूरत नहीं है।
भगवान भोलेनाथ ने यहां अपने पुत्र श्री गणेश को छोड़ दिया था। तभी से इसका नाम महागणेश जो कालान्तर में महगुनस हो गया। थोड़ा आगे चलने पर पंचतरणी नामक स्थान आता है। ऐसा कहा जाता है कि जब शिव माँ पार्वती को अमरकथा सुनाने के लिए यहां से गुजर रहे थे, तब उन्होंने नटराज का रुप धारण कर नृत्य किया था। नृत्य करते समय उनकी जटा खुल गई थी जिसमें से गंगा प्रवाहित होते हुए पाँच दिशाओं में बह निकली। ऐसी मान्यता है कि भोले ने यहां पंच महाभूतों का परित्याग कर दिया था। यात्री यहां रात्रि विश्राम करते हैं तथा जगह-जगह लगे भण्डारों में भोजन करते है।
पंचतरणी से पवित्र गुफ़ा ( 6 कि.मी.)
पंचतरणी से 3 कि.मी. सर्पाकार पहाड़ियाँ चढकर 3 कि.मी बरफ़ीली चट्टानॊं पर चलकर यात्री बर्फ़ से अठखेलियां करता, उत्साह के साथ आगे बढ़ता है, क्योंकि यहीं से वह दिव्य गुफ़ा के दर्शन होने लगते हैं। गुफ़ा को देखते ही यात्री की अब तक की सारी थकान दूर हो जाती है।
समुद्र तल से 12730 फीट की ऊँचाईं पर 60 फ़ीट चौडी, 25 फ़ीट लंबी तथा 15 फ़ीट ऊँची गुफ़ा में यात्री की आँखें प्रकृति द्वारा निर्मित शिवलिंग को निहारकर धन्य हो उठती हैं। यहीं हिम से निर्मित माँ पार्वती के भी दर्शन होते हैं। गुफ़ा के ऊपर रामकुण्ड है, जिसका अमृत समान जल गुफ़ा में प्रवेश करने वाले यात्रियों पर बूंद-बूंद टपकता है।
हजारों फ़ीट ऊपर से प्रकृति का अद्भुत नजारा देखकर काफ़ी प्रसन्नता का अनुभव होता है। गुफ़ा के पास ही हैलीपैड भी बना हुआ है, जहाँ से आप हेलिकाप्टर को पास से उतरता तथा आसमान में उड़ान भरते देख सकते हैं। वे यात्री जिनके पास समय कम है अथवा वे शारीरिक रुप से कमजोर हैं, इस सेवा का लाभ उठा सकते हैं। आपकी यात्रा के शुरुआती बिन्दु से लेकर यात्रा के अन्तिम पड़ाव तक भारतीय फ़ौज के जवान दिन-रात आपकी सुरक्षा में तल्लीन रहते हैं। कभी- कभी घुसपैठिये इस यात्रा में विध्न उत्पन्न करने से बाज नहीं आते। फ़ौज के रहने से आपको चिन्ता करने की तनिक भी आवश्यकता नहीं है।
भगवान अमरनाथ के दर्शन-पूजा-पाठ आदि के बाद यात्री अपनी यात्रा से वापिस लौटने लगता है। यहाँ से एक छोटा रास्ता नीचे उतरने के लिए बालटाल होकर भी जाता है। यदि आप इस काफ़ी उतार वाले रास्ते का चयन करते हैं तो आप लेह-लद्दाख-कारगिल-सोनमर्ग-गुलमर्ग होते हुए श्रीनगर आ सकते हैं। यहाँ आकर आप शिकारे का आनन्द उठा सकते हैं। कश्मीर का यह पिछला हिस्सा सौंदर्य से भरपूर है। प्रकृति नटी का अनुपम नजारा आपको यहां देखने को मिलता है।
अमरनाथ की यात्रा यद्यपि कठिन अवश्य है, लेकिन मन में यदि उत्साह और उमंग है तो निःसन्देह इसमें आपको भरपूर मजा आएगा। यदि आपने प्रकृति के इस अद्भुत नजारे तो नहीं देखा तो सब बेकार है। अतः एकबार पक्का मन बनाइये और बर्फ़ानी बाबा के दर्शनों का लाभ उठाइये। यात्रा करने से पहले हमें क्या-क्या करना चाहिए और कौन-कौन सी सावधानियां बरतनी चाहिए, उस पर थोड़ा ध्यान दिए जाने की जरूरत है।
अमरनाथ की यात्रा हेतु कुछ महत्वपूर्ण जानकारी
(1) यात्री अपना नाम-पता-टेलीफ़ोन नम्बर-मोबाइल नम्बर आदि को अपनी जेब में अवश्य रखें और साथ ही अपने साथियों के नाम पते भी रखे, जो जरूरत पड़ने पर बड़े काम आएंगे।
(2) अपने साथ सूखे मेवे, नमकीन अथवा भूने चने तथा गुड़ अवश्य रख लें।
(3) सर्द हवा से चेहरे को बचाने के लिए वेसलीन, मफ़लर, ऊनी दास्ताने, बरसाती, मोजे, कोल्ड क्रीम साथ रखें ,क्योंकि यहां कभी भी बारिश अथवा बर्फ़ पड़ सकती है। खुला आसमान और खुली धरती के बीच आपको यहाँ रहना होता है। फिर यहां टैंटों के अलावा कोई शैड-वैड आपको देखने को भी नहीं मिलेगे
(4) यदि आप पिट्टु या घोड़े वाले को साथ लेते हैं तो उनका रजिस्ट्रेशन-कार्ड अपने पास रख लें और यात्रा की वापसी में लौटा दें।
(5) रास्ता उबड-खाबड़ अथवा फ़िसलन भरा मिलेगा ही, अतः जूते वाटरप्रूफ़ तथा ग्रिप वाले ही पहनें।
(6) चढ़ाई करते समय थक जाएं तो बीच-बीच में आराम करते चलें। अपने आपको ज्यादा थका देने का प्रयास न करें।
(7) आवश्यक दवाएं अपने पास रखें। हालांकि यहां सरकार द्वारा पूरी व्यवस्था है, फिर भी अपने पास दवाओं का किट जरूर रख लें।
(8) मुझे यह कहने में तनिक भी संकोच नहीं हो रहा है कि हम भारतीयों में यहाँ-वहाँ कचरा फेंक देने की बुरी आदत है। कृपया इससे बचें। अपनी खाली प्लास्टिक की बोतलें अथवा प्लास्टिक की थैलियाँ यहाँ-वहाँ न फेंकें। जब गाँव-शहर में ही समुचित सफ़ाई की व्यवस्था हम नहीं बना पाते तो पहाड़ों के दुर्गम स्थान पर कौन सफ़ाई करने की हिम्मत जुटा पाएगा? कई सज्जन लोग बोतल को आधी भरकर उसे नदी में बहा देते हैं। पता नहीं, अनजाने में ही हम पर्यावरण का कितना नुकसान कर बैठते हैं!
(9) मेडिकल फ़िटनेस का सर्टिफ़िकेट यात्रा से पूर्व अवश्य बनवा लें।
(10) भारत सरकार ने चप्पे-चप्पे पर सुरक्षा के कड़े प्रबंध किए हुए हैं। इसके अलावा आपकी निगरानी के लिए हेलीकाप्टर से भी नजर रखी जाती है। अतः सैनिकों के द्वारा दिए गए निर्देशों का कड़ाई से पालन करें।
- गोवर्धन यादव
103 कावेरी नगर, छिन्दवाडा, म.प्र. 480001
09424356400
ई-मेल: goverdhanyadav44@gmail।com
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अधिक जानकारी के लिए आप श्री अमरनाथ जी श्राइन बोर्ड की वेब साइट देख सकते हैं। अमरनाथ से संबंधित पौराणिक कथाएं पढ़ें।