हिंदी चिरकाल से ऐसी भाषा रही है जिसने मात्र विदेशी होने के कारण किसी शब्द का बहिष्कार नहीं किया। - राजेंद्रप्रसाद।
 

हँसाइयाँ (काव्य)

Author: बेधड़क बनारसी

उस खुदा का नहीं कानून समझते हैं वे
मुझको हँसने का ही मजमून समझते हैं वे।
‘बेधड़क' क्या करूं मैं उनको दिखाकर सूरत
मेरी फोटो को भी कार्टून समझते हैं वे।

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देखिए, यह सीन कितना ग्रैंड है
देह है या साइकिल का स्टैंड है।
हो भले सूरत हमारी ‘इंडियन,'
दिल हमारा मेड इन इंग्लैंड है।

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वह जमाने के बराबर हो गयीं
पालकी से आज मोटर हो गयीं ।
‘बेधड़क' वालंटियर ही रह गये
श्रीमती जी किंतु लीडर हो गयीं ।

- बेधड़क बनारसी

 

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