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हास्य ही सहारा है (काव्य) |
Author: डॉ. गिरिराजशरण अग्रवाल
जिंदगी हो गई है तंगदस्त
और तनावों ने उसे
कर दिया है अस्तव्यस्त,
मस्ती की फ़हरिस्त
निरस्त हो गई है
और हमारी हस्ती
अपनों के धोखे में
पस्त हो गई है।
अब कोई ऐसा सिद्धहस्त
सलाहकार भी नहीं
जो हमारी त्रस्त जीवनशैली को
आश्वस्त कर सके
या हमारे सपनों का रखवाला
सरपरस्त बन सके।
ऐसे में मात्र एक ही सहारा है
हमारे जीवन की शुष्क धरा पर
केवल हास्य ही
उभरता हुआ चश्मा है, धारा है।
यही हमारे दुखों को देगा शिकस्त
और करेगा हमें विश्वस्त
कि आओ, हास्य-कविताएँ पढ़ो
और हो जाओ मदमस्त।
- डॉ. गिरिराजशरण अग्रवाल